ना हिन्दू के लिए ना मुसलमान के लिए,
बहाना है आँसू तो बहा इंसान के लिए।
©पंकज प्रियम
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
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Friday, June 28, 2019
589. इंसान के लिए
588. निग़ाहों का समंदर
लहरों पे भी कश्ती चलाना जिसे खूब आता है
निगाहों के समंदर में वो अक्सर डूब जाता है।
©पंकज प्रियम
Friday, December 14, 2018
Thursday, December 13, 2018
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