ये उन दिनों की बात है...
फ़ास्ट होती जिंदगी में बधाइयां भी बहुत एडवांस हो चली है। मोबाइल और सोशल मीडिया ने इसे बहुत आसान लेकिन सामान्य सा कर दिया है। एक ही संदेश बार बार फोरवर्डेड होने लगे हैं और कईबार तो अपना बनाया सन्देश भी किसी अन्य के जरिये लौट आता है वो भी नाम बदलकर। पहले अपने मित्रों और सगे सम्बन्धियो को नववर्ष की बधाई ग्रीटिंग्स कार्ड से दी जाती थी जिसके लिए दिसम्बर के पहले सप्ताह से ही कार्ड की खरीदारी और पोस्ट करने का सिलसिला शुरू हो जाता था। एक से बढ़कर एक ग्रीटिंग्स ,हैप्पी न्यू इयर बोलने वाले कार्ड । मैं इस मामले में थोड़ा अलग प्रयास में रहता था। खुद फूल पत्ति और कागजों से पेंटिंग बनाकर कार्ड भेजता था। पूरा दिसम्बर इसी में गुजर जाता था। लेकिन कार्ड तैयार करने के बाद खुद को आर्चीज का बाप समझता था बड़ा मजा आता था। फिर उसमें 4-5 रुपये गांधी छाप डाक टिकट चिपका कर नाते रिश्तेदारों और दोस्तों के घर भेजता था। फिर इंतजार रहता था जवाबी कार्ड का। किसी का आया तो खुश नही जिसका आया उसके नाम अगले साल की सुपारी ले लेता था कि छोड़ना नही है उसको। सच मे क्या दिन थे वो भी ,बिना मोबाइल ,बिना इंटरनेट के प्यार इश्क और मुहब्बत की इंतजार वाली बातें भी इतनी गहरी हो जाती थी कि अब लाइव वीडियों कॉल में भी उस टाइप की फीलिंग्स नही हो पाती है।पहली जनवरी तक ग्रीटिंग्स कार्ड मिला कि नही ये भी सस्पेंस बना रहता था। कॉलेज के दिनों में गिने चुने पड़ोसियों के घनचकरी वाले लैंडलाइन फोन का सहारा था। फिर घर मे भी फोन कनेक्शन हुआ तो अधिक पढ़ाई के प्रेशर में दोस्ती का कम्प्रेसर कम पड़ गया। फिर कामधाम भागदौड़ के बीच जेब मे मोबाईल आया तो sms और कॉल के जरिये बधाइयों का सिलसिला चलता रहा। लेकिन मोबाइल ऑपरेटर भी कम चालाक नही थे। न्यू ईयर,होली,दीवाली जैसे मौकों पर फ्री सेवा बन्द कर देते या नेटवर्क बिजी कर डबल चार्ज उठा लेते। अब जबकि सोशल मीडिया,4G, वीडियो कॉल जैसी ग्लोबल सुविधाएं है तो वक्त कम पड़ रहा है। अब तो व्हाट्सप या फेसबुक पर आप सीधे उसकी डिलीवरी देख सकते हैं और तुरन्त जवाब भी मिल जाता है। लेकिन यहां भी लोगों ने व्यक्तिगत सन्देश से अधिक आसान व्हाट्सएपग्रुप और फेसबुक को बना लिया है। बस अपने टाइमलाइन पर हैप्पी न्यू ईयर टू आल फ्रेंड्स कर काम निकालने लगे है। चिट्ठी पत्री के लंबे सन्देश sms से भी शार्ट होता इमोजी चैट पर आ टिका है।
क्रमशः....
फ़ास्ट होती जिंदगी में बधाइयां भी बहुत एडवांस हो चली है। मोबाइल और सोशल मीडिया ने इसे बहुत आसान लेकिन सामान्य सा कर दिया है। एक ही संदेश बार बार फोरवर्डेड होने लगे हैं और कईबार तो अपना बनाया सन्देश भी किसी अन्य के जरिये लौट आता है वो भी नाम बदलकर। पहले अपने मित्रों और सगे सम्बन्धियो को नववर्ष की बधाई ग्रीटिंग्स कार्ड से दी जाती थी जिसके लिए दिसम्बर के पहले सप्ताह से ही कार्ड की खरीदारी और पोस्ट करने का सिलसिला शुरू हो जाता था। एक से बढ़कर एक ग्रीटिंग्स ,हैप्पी न्यू इयर बोलने वाले कार्ड । मैं इस मामले में थोड़ा अलग प्रयास में रहता था। खुद फूल पत्ति और कागजों से पेंटिंग बनाकर कार्ड भेजता था। पूरा दिसम्बर इसी में गुजर जाता था। लेकिन कार्ड तैयार करने के बाद खुद को आर्चीज का बाप समझता था बड़ा मजा आता था। फिर उसमें 4-5 रुपये गांधी छाप डाक टिकट चिपका कर नाते रिश्तेदारों और दोस्तों के घर भेजता था। फिर इंतजार रहता था जवाबी कार्ड का। किसी का आया तो खुश नही जिसका आया उसके नाम अगले साल की सुपारी ले लेता था कि छोड़ना नही है उसको। सच मे क्या दिन थे वो भी ,बिना मोबाइल ,बिना इंटरनेट के प्यार इश्क और मुहब्बत की इंतजार वाली बातें भी इतनी गहरी हो जाती थी कि अब लाइव वीडियों कॉल में भी उस टाइप की फीलिंग्स नही हो पाती है।पहली जनवरी तक ग्रीटिंग्स कार्ड मिला कि नही ये भी सस्पेंस बना रहता था। कॉलेज के दिनों में गिने चुने पड़ोसियों के घनचकरी वाले लैंडलाइन फोन का सहारा था। फिर घर मे भी फोन कनेक्शन हुआ तो अधिक पढ़ाई के प्रेशर में दोस्ती का कम्प्रेसर कम पड़ गया। फिर कामधाम भागदौड़ के बीच जेब मे मोबाईल आया तो sms और कॉल के जरिये बधाइयों का सिलसिला चलता रहा। लेकिन मोबाइल ऑपरेटर भी कम चालाक नही थे। न्यू ईयर,होली,दीवाली जैसे मौकों पर फ्री सेवा बन्द कर देते या नेटवर्क बिजी कर डबल चार्ज उठा लेते। अब जबकि सोशल मीडिया,4G, वीडियो कॉल जैसी ग्लोबल सुविधाएं है तो वक्त कम पड़ रहा है। अब तो व्हाट्सप या फेसबुक पर आप सीधे उसकी डिलीवरी देख सकते हैं और तुरन्त जवाब भी मिल जाता है। लेकिन यहां भी लोगों ने व्यक्तिगत सन्देश से अधिक आसान व्हाट्सएपग्रुप और फेसबुक को बना लिया है। बस अपने टाइमलाइन पर हैप्पी न्यू ईयर टू आल फ्रेंड्स कर काम निकालने लगे है। चिट्ठी पत्री के लंबे सन्देश sms से भी शार्ट होता इमोजी चैट पर आ टिका है।
क्रमशः....