मेरी कृतियां
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मेरी दो कृतियाँ,बहुत अनमोल है
कानों में रस घोलती,मीठी बोल है।
अन्वेषा कृति करती अन्वेषण है
आयी धरा पर दिन रक्षाबंधन है।
मन्दिर मन्दिर का प्रसाद अर्पण है
इसकी खुशी में जीवन समर्पण है।
आस्था कृति चहकता बचपन है।
किशोरी के दिल की धड़कन है।
शिक्षक दिवस पे करमा पूजन है।
उसी दिन हुआ आस्था पदार्पण है
इनमें ही घूमती मेरी धरा गोल है
इसमें बसता मेरा पूरा भूगोल है।
©पंकज प्रियम
1.4.2018
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मेरी दो कृतियाँ,बहुत अनमोल है
कानों में रस घोलती,मीठी बोल है।
अन्वेषा कृति करती अन्वेषण है
आयी धरा पर दिन रक्षाबंधन है।
मन्दिर मन्दिर का प्रसाद अर्पण है
इसकी खुशी में जीवन समर्पण है।
आस्था कृति चहकता बचपन है।
किशोरी के दिल की धड़कन है।
शिक्षक दिवस पे करमा पूजन है।
उसी दिन हुआ आस्था पदार्पण है
इनमें ही घूमती मेरी धरा गोल है
इसमें बसता मेरा पूरा भूगोल है।
©पंकज प्रियम
1.4.2018