Monday, April 16, 2018

रश्क़-ए-कमल



आज सारा झील यूँ मुस्काया है
रश्क़-ए-कमल खिल आया है।
तूने छू लिया ऐसे की लगा जैसे
कमल से पंकज मिल आया है।

झुकी झुकी सी ये तेरी निगाहें
उफ़्फ़! ये तेरी कातिल अदाएं
जल में उतरी या उससे निकली
जलपरी सी है तू हुश्न बिखराए।

माथे पे बिंदी,तेरे होठों की लाली
नागिन सी जुल्फें है काली काली
तेरे भीगे बदन की बिखरी खुशबू
लाजवाब तू,तेरी मुस्कान निराली।

किस सुघड़ हाथों की बनी मूरत
कितनी भोली सी तेरी है ये सूरत
देख मदहोशी का आलम है ऐसा
झील को भी पड़ी है तेरी जरूरत।

©पंकज प्रियम
14.4.2018