Monday, June 11, 2018

360.बिखराए गए हैं

बिखराए गए हैं।
वो तो औरों से बहलाए गए है
हम तो अपनों से सताए गए हैं।
क्या कहेंगे वो अपनी सफाई में
अपनी बातों में झुठलाए गए हैं।
कैसे भुल पाएगा,उन लम्हों को
जो मेरे ही ज़ानिब बिताए गए हैं।
भले नाम अब दो किसी और का
लबों पे गीत तो मेरे ही गाए गए हैं।
आँखों में तस्वीर भले बदल डालो
इनमें सपने तो मेरे ही चुराए गए हैं।
जो ख़्वाब कभी सजाया था प्रियम
बड़े करीने से उसे बिखराए गए हैं।
©पंकज प्रियम
10.6.2018