मुक्तक
निगाहें ख़ंजर का भी काम करती है
जिधर उठती है कत्लेआम करती है
इन आँखों की गुस्ताखियां तो देखो
दिल की बातें भी सरेआम करती है।
निगाहें मैख़ाने का भी काम करती है
मुहब्बत के पैमाने में जाम भरती है
डूबकर कभी इन आँखों में तो देखो
खुद आंखों की नींद हराम करती है।
निगाहें किताबों का भी काम करती है
कोरे पन्नों से भी इश्क़ पैगाम करती है
पढ़कर कभी देखो नैनों की तुम भाषा
दिल के जज्बातों को सलाम करती है।
©पंकज प्रियम