इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।
इस आग को अब कैसे मैं बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।
मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।
मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।
मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।
इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।
ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।
©पंकज प्रियम