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Wednesday, April 13, 2022

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

दिल की ये आग को कैसे मैं बुझा पाऊंगा
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

Wednesday, May 20, 2020

837. सफ़ेद इश्क़

नमन साहित्योदय
चित्रधारित रचना
ग़ज़ल
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
क़ाफ़िया- आएं
रदीफ़- सनम

नज़र से नज़र को पिलाएं सनम।
चलो उम्र को फिर घटाएं सनम,

चले तुम गये थे  कहाँ छोड़ के,
चलो दिल से दिल को मिलाएं सनम।

अभी जो मिले हो तो जी भर मिलो
गुज़र जो गया वक्त लाएं सनम।

गुजर जो गयी उम्र तो क्या हुआ?
जवां दिल चलो फिर बनाएं सनम।

समंदर  किनारे  लहर   मौज  में,
चलो वक्त कुछ तो बिताएं सनम।

पकड़   हाथ मेरा   रहो  साथ तो,
जमाने को जीवन दिखाएं सनम।

चले जो गये छोड़ तन्हा सभी,
उदासी को मिलकर घटाएं सनम।

बुढ़ापे ने घेरा मगर दिल जवां,
चलो मिल फ़साना सुनाएं सनम।

जवानी फ़क़त चार दिन की यहाँ,
मुहब्बत यूहीं मिल लुटाएं सनम।

सफ़र आखिरी में न फिसले कभी
कदम से कदम को मिलाएं सनम।

सभी को गुजरना इसी वक्त में
प्रियम को कहानी बताएं सनम।

©पंकज प्रियम

Monday, December 16, 2019

757. इश्क़ की आग


इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने आजा
आजा आजा मुझे सीने से लगाने आजा।

प्यार के फूल मेरे दिल में खिलाने आजा
आजा आजा मुझे खुद से मिलाने आजा।

जाम पैमाग जो आँखों से छलकता तेरा
अपने होठों से वही जाम पिलाने आजा।

इश्क़ की आग जो सीने में जला रक्खा है
इश्क़ की आग से वो आग बुझाने आजा।

प्यार का ज्वार जो साँसों ने उठा रक्खा है
अपनी मौजों से ही उसको गिराने आजा।

जवां दिल जोश में जो होश गवां बैठा है,
अपने आगोश में ले होश जगाने आजा।

जब तलक जिंदा रहा रोज रुलाया तुमने,
मेरी मैय्यत पे अभी अश्क़ बहाने आजा।

तेरी यादों का 'प्रियम' दीप सजा रखा है
अपने हाथों से वही दीप जलाने आजा।
©पंकज प्रियम

Monday, November 18, 2019

729. जान तो है

जान तो है

1222 1222 122
नहीं कुछ है मगर जान तो है,
गरीबी है मगर अरमान तो है।

नहीं बिकता महज़ कुछ रुपयों में,
जमीरी को बड़ा सम्मान तो है।

खरीदे जो मुझे औकात किसमें,
मिला माँ का मुझे वरदान तो है।

कटे हैं पँख तो क्या बैठ जाऊं?
गगन से भी ऊँची उड़ान तो है।

कभी कमजोर मत समझो प्रियम को
गये सब लूट लेकिन शान तो है।
©पंकज प्रियम

Saturday, November 16, 2019

725. किधर देखते हो

ग़ज़ल
122 122 122 122
चुराकर नज़र से नज़र देखते हो,
पिलाक़े मुहब्बत असर देखते हो।

यहाँ भी वहाँ भी जमीं आसमां में
मिलूँगा वहीं तुम जिधर देखते हो।

तुम्हारी नज़र में तुम्हारे जिगर में,
बसा हूँ यहीं पर किधर देखते हो।

नज़र तीर हमको यूँ हीं मार देती,
पिलाक़े मगर तुम ज़हर देखते हो।

प्रियम को जलाना तुम्हें खूब भाता,
इधर मैं खड़ा पर उधर देखते हो।
©पंकज प्रियम

Friday, September 27, 2019

668.राज़ दिल का

2122 2122
आज सबकुछ बोलना है,
राज़ दिल का खोलना है।

ख़्वाब देखा जो कभी था,
आज उसको तोड़ना है।

दर्द तो होगा बहुत पर,
घाव दिल का फोड़ना है।

जख़्म गहरे हो गये जब,
प्यार को अब छोड़ना है।

ऐ प्रियम कुछ रह गया है
या अभी मुँह मोड़ना है।
©पंकज प्रियम

Thursday, September 26, 2019

665. नजर से नज़र तक

नज़र से नज़र
122 122 122 122
नज़र से नज़र तब हमारी मिलेगी,
अगर जो इजाज़त तुम्हारी मिलेगी।

यकीनन दिलों पर चलेगी कटारी,
नज़र जब तुम्हारी हमारी मिलेगी।

निगाहों से ऐसे न खंज़र चलाओ,
नज़र से दिलों की सवारी मिलेगी।

समंदर से गहरी नज़र जो तुम्हारी,
कभी थाह लेने की बारी मिलेगी।

प्रियम को हजारों नज़र ढूढ़ती पर,
तुम्हारी नज़र सी न प्यारी मिलेगी।

©पंकज प्रियम

Tuesday, September 24, 2019

663.मुहब्बत की कहानी

ग़ज़ल
जवां दिल बहकता मचलती रवानी,
मिले दो जवां दिल फ़िसलती जवानी।

नज़र से नज़र और अधर से अधर,
मिला जो अगर तो दहकता है पानी।

जुबाँ बंद लेकिन नज़र बोल जाती
मुहब्बत की होती यही है निशानी।

धड़कने लगे दिल अगर देख कर तो,
समझ लो शुरू हो गयी है कहानी।

लगे चाँद मद्धम, पवन छेड़ सरगम,
लगे साँझ सुरमय लगे रुत सुहानी।

धड़कते दिलों की जरा बात सुन लो,
करो तुम मुहब्बत सदा ही रूहानी।

मचल दिल उठेगा अगर तुम सुनोगे,
ग़ज़ल-ए-मुहब्बत प्रियम की जुबानी।
©पंकज प्रियम

662. हमारी कहानी

122 122 122 122
ये मेरी मुहब्बत तुम्हारी जवानी,
बनेगी अलग ही हमारी कहानी।

कभी प्यार से तुम जरा मुस्कुरा के,
अधर से अधर पे लगा दो निशानी।

नज़र को नज़र से कभी यूँ मिलाके,
समंदर निग़ाहों में उठा दो रवानी।

जरा पास आओ गले से लगाओ,
करो शाम मेरी जरा सी सुहानी।

प्रियम की मुहब्बत सदा है तुम्हारी,
बनाकर दिवाना बनो तुम दिवानी।
©पंकज प्रियम

Sunday, September 22, 2019

658. नज़र

ग़ज़ल/नज़र
122 122 122 12
मुहब्बत मुझे इस कदर हो गई,
कि रातें मेरी मुख़्तसर हो गई।

ख़यालों में उनकी जगा रात भर,
जरा आँख झपकी सहर हो गई।

नज़र जो खुली तो उन्हें ढूंढती,
न जाने नज़र से किधर हो गई।

सभी से छुपाया नज़र को मगर,
जमाने को कैसे ख़बर हो गई।

तुम्हारे ख़यालों हुआ यूँ असर,
कि मेरी ग़ज़ल बा-बहर हो गई।

मुहब्बत हुई जो मुझे आजकल,
नज़र भी नज़र की नज़र हो गई।

नज़र खोजती है जिसे चाहती है,
प्रियम की नज़र बेख़बर हो गई।

©पंकज प्रियम
22 सितम्बर 2019

Friday, September 20, 2019

657.चिट्ठियां

2122 2122 2122 212
खोलकर तुमने क्या कभी देखी हमारी चिट्ठियां,
या लिफ़ाफ़े में रही.....  रोती बिचारी चिट्ठियां।

खोलकर दिल रख दिया था प्यार में तेरे सनम,
बोल तुमने क्या किया वो देख सारी चिट्ठियां।

दिल मचलता है मिरा, जब देखता हूँ ख़त तिरा,
आज भी हमने रखी है,... वो तुम्हारी चिट्ठियां।

क्या हसीं वो दिन भी थे, रोज लिखता था तुझे,
कौन लिखता है कहाँ अब आज प्यारी चिट्ठियां।

अब प्रियम क्यूँ ख़त लिखेगा फोन जो सस्ता हुआ
आज बदला जो जमाना,   खुद से हारी चिट्ठियां।
©पंकज प्रियम

Monday, September 16, 2019

656. छुपाना भी है

ग़ज़ल
उन्हें हाल दिल का बताना भी है,
मगर राज अपना छुपाना भी है।

जरा तुम बताओ कि मैं क्या करूँ,
उन्हें प्यार अपना जताना भी है।

बचा के नज़र आज जाऊं किधर,
नज़र से नज़र जो मिलाना भी है।

कभी जख़्म उनको दिखाया नहीं,
छुपा कर उसे मुस्कुराना भी है।

प्रियम आज सबकुछ बताना नहीं,
वचन जो दिया वो निभाना भी है।
©पंकज प्रियम
16/09/2019

655. इश्क़ उधारी

इश्क़ उधारी
इश्क़ में यूँ तेरा कर्ज़ा उतार चले,
जीत कर भी खुद को हार चले।

तुम याद करो या न करो मुझको,
हम तेरी यादों को ही संवार चले।

आदमी हूँ इश्क़ होना लाज़िमी है,
दिल के खातों में मेरा उधार चले।

हर्फ़ दर हर्फ़ जो तुम उतर आते,
लफ्ज़ों से ही मेरा कारोबार चले।

मेरे दर्द से तुझको है कहाँ वास्ता,
तुम तो प्रियम को जिंदा मार चले।
©पंकज प्रियम

654. बहलाती हो

ग़ज़ल
तुम जब चाहे ख़यालों में आ जाती हो,
खुद मैं बुलाऊँ तो फिर भाव खाती हो!

तेरा ख़्वाब कैसा तेरी जुस्तजू कैसी?
तुम ख़यालों में किसे आज़माती हो?

इश्क़ के समंदर में डूबकर जो निकला
उसे इश्क़ का फ़लसफ़ा सिखाती हो!

है मुहब्बत मुझसे तो इज़हार कर दो,
दूर रहकर इस कदर क्यूँ तड़पाती हो?

नापनी है गहराई तो डूबना ही होगा,
साहिल से यूँ अंदाज़ क्या लगाती हो?

देखी समझी जिसने यह दुनियादारी,
तुम उसको भी दिल से बहलाती हो!

लफ़्ज़ों का जिसने रच दिया समंदर,
प्रियम को अल्फ़ाज़ों में उलझाती हो!
©पंकज प्रियम
16.09.2019
1:09AM

Saturday, September 14, 2019

653 लफ़्ज़ अमानत

ग़ज़ल
हर दिल में भरो चाहत, बस प्यार मुहब्बत हो,
गन्दी न जुबाँ करना, नज़रों में न नफऱत हो।

मत भेद कभी करना, भाषा की न बोली की,
हिंदी सी जुबाँ मीठी, ऊर्दू की नज़ाकत हो।

आवाज़ सुनो दिल की, तुम काम करो मन की,
हर काम करो दिल से, हर काम की इज्ज़त हो।

दुनियां में सभी आये,  कुछ नाम कमाने को,
कुछ काम करो ऐसा, तेरे नाम की कीमत हो।

सुन आज प्रियम कहता, कुछ साथ नहीं जाता,
अल्फ़ाज़ बनो ऐसा, हर लफ़्ज़ अमानत हो।
©पंकज प्रियम

Friday, September 13, 2019

650. फैसला कीजिये

ग़ज़ल
212 212 212
दिलबरों सी दवा कीजिए
दर्द देकर दुआ कीजिये।

दूर से दिल मिला है कभी,
पास आकर मिला कीजिये।

दिल लगाकर जरा देखिये
बाग में फिर खिला कीजिये।

हौसला जो बढ़ा हो अगर
प्यार में फिर ख़ता कीजिये।

हो गयी जो प्रियम से ख़ता
आप ही फैसला कीजिये।
©पंकज प्रियम

Wednesday, September 4, 2019

647.इश्क़ मुहब्बत

ग़ज़ल

212 212 212 212
प्यार में हम सुकूँ रोज खोते रहे,
रातभर हम जगे आप सोते रहे।

नींद मेरी उड़ी आप को क्या पता,
ख़्वाब में भी जगे और रोते रहे।

प्यार हमने किया तो ख़ता क्या हुई
आंसुओं से नज़र को भिंगोते रहे।

इश्क़ की आग ऐसी लगी क्या कहूँ,
खुद नज़र को नज़र में डुबोते रहे।

मुफ़्त में हम मिले आप को क्या कदर
एक हम हैं प्रियम प्यार ढोते रहे।

©पंकज प्रियम

645. अश्क़ मुहब्बत

ग़ज़ल
काफ़िया- अत
रदीफ़- हो चुकी है
2122 2122 2122 2122
आँख को अब आंसुओं की रोज आदत हो चुकी है,
दिलजलों की क्या कहानी ख़त्म चाहत हो चुकी है।

हो गया अब बेवफ़ा तो क्या कहूँ मैं आज तुमको
प्यार का मुँह मोड़ लेना आज किस्मत हो चुकी है।

हम कभी जो दूर जाते, तुम शिकायत खूब करते,
अब हमारे पास आने पर शिकायत हो चुकी है।

आज़माती ज़िन्दगी तो आज़माती मौत भी क्यूँ?
मौत की भी दिलबरों सी आज हसरत हो चुकी है।

ख़्वाब हमने साथ देखा प्यार तुमने ही जगाया,
थी मुहब्बत खूब तो क्यूँ आज नफऱत हो चुकी है।

हम वफ़ा करते रहे पर तुम जफ़ा करते रहे क्यों,
बेवफ़ाई आज दिल की ख़ास फ़ितरत हो चुकी है।

इश्क़ मुझसे था तुम्हें या दिल लगाने का खिलौना,
छोड़कर अपने प्रियम किनसे मुहब्बत हो चुकी है।

©पंकज प्रियम
4 सितम्बर 2019
00:26 AM

Sunday, September 1, 2019

641.राज़

ग़ज़ल


221 1222 221 1222

इक राज़ हमारा है, इक राज़ तुम्हारा है,

जो राज़ छुपाया वो अंदाज़ तुम्हारा है।


तेरी खुशबू को हम यूँ हर रोज हवा देते,

लिखते हर गीतों में अल्फाज़ तुम्हारा है।


तेरे कदमों की आहट पहचान सदा लेते,

मेरी हर धड़कन बजता साज़ तुम्हारा है।


मुझसे मिलने की चाहत सब रखते हैं पर,

मेरे दिल पर बस चलता राज तुम्हारा है।


ये वक्त हुआ है किसका तुम बतलाओ,

कल राज प्रियम का था आज तुम्हारा है।

©पंकज प्रियम

Saturday, August 31, 2019

640.बदनाम न करो

बदनाम न करो

निगाहों से तुम यूँ क़त्लेआम न करो,
हुस्न की नुमाईश यूँ सरेआम न करो।

बहुत ऊँची है नफ़रत की दीवार मगर,
मेरी मुहब्बत को यूँ बदनाम न करो।

अभी तो पहला ही कदम है इस डगर,
जाना है दूर तलक यूँ आराम न करो।

ख़ता हुई तो सजा मौत की दे दो मगर,
किसी का जीना तो यूँ हराम न करो।

नहीं साथ देना तो साफ़ कह दो मगर
रुसवाई का प्रियम यूँ इंतजाम न करो।

©पंकज प्रियम