Friday, February 15, 2019

524.प्रहार करो

संहार करो
कैसे देखूँ माँ के आँसू, वो दृश्य सिंदूर मिटाने का
रोते-बिलखते बच्चों को,शव ढोते बूढ़े कन्धों को।
फट जाती है छाती अपनी,  देख तिरंगे में ताबूत
तब भी शर्म नहीं आती,घर में छुपे जयचन्दों को।
बहुत सह लिया घात भीतरी,अब प्रतिकार करो
दुश्मनों के घर में घुसकर,चढ़के उनपर वार करो।
आ गया है वक्त अब, पौरुष अपना दिखाने का
टूट पड़ो आतंकी पे अब,खुद इक तलवार करो।
तुझपे टिकी है नजरें सारी, है उम्मीद जमाने की
कूद पड़ो रणभूमि में,दुश्मन का अब संहार करो।
तुम्हें पुकारती मां भारती,वक्त है कर्ज चुकाने का
मातृभूमि की रक्षा में,खुद को युद्ध में तैयार करो।
उबल रहा जो रक्त रगों में, दुश्मन धूल चटाने को
रक्तरंजित कर दो सीमा, पाक के टुकड़े चार करो।
सज है सब भारतवासी, अपना शीश कटाने को
नहीं चाहिए निंदा कड़ी, अब युद्ध सीमापार करो।
बहुत बहाया हमने आँसू, ये वक्त उन्हें रुलाने का
नहीं चाहिए कोई संधि, दुश्मन में हाहाकार करो।
नहीं वक्त बातों का, अब नहीं वक्त समझाने का
टूकड़े-टूकड़े कर दो उसके, इतने तुम प्रहार करो
सज धज के खड़ा तिरंगा, वक्त उसे लहराने का
गाड़ दुश्मनों की छाती में, झंडे का सत्कार करो।
हर जवान खड़ा देश का, सज है रक्त बहाने को
जय हिन्द के नारों से, बस तुम अब हुँकार करो।
©पंकज प्रियम
#पुलवामा