समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
चितवन मुक्तक 1222 1222 1222 1222 बड़ी क़ातिल कटारी है, तुम्हारी धार ये चितवन, उतर जाती अदा से है, हृदय के पार ये चितवन। भले हम दूर हों बैठे, अधर खामोश हो फिर भी- दिलों में बात हो जाती, चले जो यार ये चितवन।। ©पंकज प्रियम 16.1।2020