Monday, February 3, 2020

785. सुनो गर्जना

सुनो गर्जना
वर्तमान की।
चहुँ ओर उठा
जो शोर सुनो,
सिसकती नारी
तुम और सुनो,
मासूमों के आँसू
घटाटोप घनघोर सुनो।
क्रिया की प्रतिक्रिया की
घात की प्रतिघात की
समर्थन-विरोध का शोर सुनो।
सुनो गर्जना
प्रतिमान की
धधकती ज्वाला
अभियान की
चिल्लाता जोर सुनो।
मंचों के आसन से
धृतराष्ट्री शासन से
कालाबाज़ारी राशन से
उठती गर्जना हर ओर सुनो।
अंधा दिखाए राह यहाँ
कुर्सी की बस चाह यहाँ
दिन दहाड़े खुद लूटकर डाकू
सिपाही को कहता चोर सुनो।
घपले-घोटालों के बनते
कीर्तिमान की
सुनो गर्जना
वर्तमान की।

©पंकज प्रियम
3फरवरी2020