हीरो!
भला इसतरह भी कोई जाता है क्या?
यूँ खुद को कोई स्वयं मिटाता है क्या?
अभी तो शुरू हुआ था वक्त तुम्हारा-
वक्त से पहले यूँ दौड़ लगाता है क्या?
कुछ भी रही होंगी मजबूरियां तेरी,
मगर कोई कायरता दिखाता है क्या?
जीवन तो हरक्षण युद्ध है संघर्षों का,
रणभूमि में कोई पीठ दिखाता है क्या?
नहीं, तुम नहीं हो सकते रोल मॉडल,
हीरो जीवन में हारना सिखाता है क्या?
कायर होता वो खुद हारता जो जीवन,
खुद सोकर कोई औरों जगाता है क्या?
मुक्त हो गए तुम जीवन झंझावातों से,
मगर अपनो को दुःख पहुचाता है क्या?
मौत भी तो रोई होगी तुमसे मिलकर,
ऐसी अपनों को कोई रुलाता है क्या?
तनिक सोचते क्या बीतेगी माँ-बाप पर,
अपने बच्चों का शव पिता उठाता है क्या?
आख़िर क्यूँ? क्यूँ आँसू बहाऊं मैं तुझपर!
ईश्वर वरदान जीवन, कोई ठुकराता है क्या?
नहीं तुम हीरो कतई नहीं हो सकते हो मेरे,
विलन को देखकर हीरो भाग जाता है क्या?
कैसे दिखाऊँ मैं बच्चों को तस्वीर तुम्हारी?
कोई भला कायरों की कहानी सुनाता है क्या?
बहुत गर्व था तेरे फ़र्श से अर्श तक सफ़र पर,
आसमां पे चढ़ कोई खुद को गिराता है क्या?
कवि पंकज प्रियम
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि सुशान्त