मन का राग बैरागी है ...
क्या कहूँ मन की बात ,ये सब सह लेता है कभी भीड़ में तनहा होता कभी तन्हाईओं में भी खुश हो लेता है ।सागर की लहरे भी कम पड़ जाती कभी अश्को से भी प्यास बुझा लेता है ।कहा तो खुद पे भी यकीन नही चाहता है जिसे सर पे बिठा लेता है । न हो यकीं तो पूछ लो दिल सेकैसे रोते हुए भी सबको हँसा देता है ।
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