समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Friday, September 23, 2011
शहरो में नही है --गाँव में मिलेगी लड़कियां
झारखण्ड की लड़कियों का जहाँ दूसरे राज्य और देशो में जनसँख्या वृद्धि के उपयोग में लायी जा रही है वहीं राज्य के शहरो में इनकी संख्या तेजी से घटती जा रही है। २०११ की जनगणना के जो आकडे सामने आये है वो चौकाने वाले है.राज्य के शहरो का लिंगानुपात रास्ट्रीय औसत से काफी कम है और इसकी बड़ी बजह कन्या भ्रूण हत्या और पलायन बताई जा रही है भारत की जनगणना २०११ के द्वितीय चरण के औपबंधिक आकडे जारी कर दिए गये है जिसमे शहरी और ग्रामीण जनसँख्या का तुलनात्मक विवरण है. इसमें जो आकडे उभर के सामने आये है वो काफी चिंताजनक है.रास्ट्रीय औसत के मुकाबले झारखण्ड की जनसँख्या वृद्धि दर तो काफी अधिक है लेकिन शहरो में लिंगानुपात के आकडे भयावह है. देश में शहरी लिंगानुपात 926 है जबकि झारखण्ड में ये महज 908 है.सबसे अधिक बुरा हाल चतरा का है जहाँ ये दर सिर्फ 868 है.इसी तरह धनबाद-(891 ),गढ़वा-900,देवघर-884,गिरिडीह-917,बोकारो-892,पलामू-906,रांची-921,दुमका-894,हजारीबाग-911,रामगढ-886 और जमशेदपुर-924 के साथ-साथ सभी शहरो में रास्ट्रीय औसत के मुकाबले लिंगानुपात की बदतर स्थिति है. जनगणना निदेशालय की माने तो राज्य के विकसित शहरो में घटते लिंगानुपात की बजह पलायन और एकल पुरुष मजदूर है. इसकी असली बजह हम बताते हैं दरअसल राज्य के शहरो में लडकियों का पलायन बड़ी संख्या में होती है और बची कसर निजी क्लिनिक और अस्पताल कर देते है जो कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देते हैं. शहर में ऐसे कई सेंटर है जहाँ लींग की धड़ल्ले से जाँच होती है और महिलाये खुद अपनी कोख में पल रही बेटियो का गला घोट देती है. -०-६ साल की उम्र तक के बच्चो में भी लिंगानुपात की चिंताजनक स्थिति है,राज्य के बड़े शहरो में इस उम्र का लिंगानुपात काफी कम है जो आनेवाले संकट का साफ संकेत दे रही है। राज्य में हरसाल हजारो लडकिया दलालों के चंगुल में फंसकर महानगरो में बेचीं जा रही है और इस बात का भी खुलासा हो चुका है की उनका इस्तेमाल देह की मंडी और बच्चा जनने के लिए किया जाता है.---
पंकज भूषण पाठक .
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