Saturday, January 9, 2021

902. ओ परदेशी

ओ परदेशी रौनक उसकी, खूब तुझे तो भाती होगी,
लेकिन अपने देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
भारत अपना देश है प्यारा,
लगता सबसे है ये न्यारा
याद तुझे तो आती होगी,
रोज तुझे तड़पाती होगी।
इस मिट्टी की खुशबू तुझको, रह रह के महकाती होगी।
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी

वो घर -आँगन, गांव की गलियां,
खेत में झूमती धान की बलियां।
नीम तले वो छाँव सुहानी,
कहती कहानी बूढ़ी नानी,
दादा-दादी की वो गोदी, अब भी तो सहलाती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
माटी की गुड़िया घास का गहना,
लड़ना-झगड़ना, सुनना-कहना।
वो बचपन की बात निराली,
होली दशहरा ईद दिवाली
बापू कंधा, माँ की ममता, आँख तेरी भर आती होगी
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
वो बचपन के दोस्त कमीने,
एक से बढ़कर एक नमूने।
भूल-भुलैया खेल खिलौने
लगते अब वो सारे नगीने।
याद वो करके प्यार सलोना, खुद से तू शर्माती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
गंगा-यमुना धारा अविरल,
सागर-सिंधु झरना निर्मल।
वेद-पुराण की बातें सुनना,
राजा-रानी ख़्वाब में बनना।
प्रेम से सिंचित भारत भूमि, हरदम पास बुलाती होगी,
ओ परदेशी देश की मिटटी , याद तुझे तो आती होगी।
©पंकज प्रियम


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