जहाँ बुद्धि और ज्ञान
वहीं लक्ष्मी का वरदान
लक्ष्मी लोहा-लक्कड़ और बासन-बर्तन में नहीं वल्कि गणेश यानी बुद्धि के साथ प्रसन्न रहती है। धनतेरस में स्टील, काँच, प्लास्टिक, लोहा इत्यादि खरीदकर आप शनि राहु को आमंत्रित करते हैं। असल में धनतेरस स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि की जयंती है जो समुद्र मंथन में आज ही दिन अवतरित हुए थे। वैदिक काल में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी या धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा। समय के साथ इस दिन लोग सोने-चांदी की खरीदारी भविष्य हेतु करने लगे। बाद में बाजार ने इस कदर मनुष्य के दिलोदिमाग को अपने चंगुल में फंसा लिया कि लोग धनतेरस पर खरीदारी के लिए इस तरह टूट पड़ते हैं मानो आज के दिन गाड़ी, टीवी, फ्रिज आलमीरा खरीद कर लक्ष्मी जी को डायरेक्ट घर घुसा देंगे। बाजार पूरे साल भर की बिक्री इस एक दिन में कर लेता है। धनतेरस की अगली सुबह का अख़बार देखकर लगेगा नहीं कि कहीं मंहगाई भी है। लाखों-करोड़ों की खरीद सिर्फ़ एक रात में हो जाती है। लोग कर्ज़ लेकर लाखों की गाड़ी और सामान घर में भर लेते हैं। जार्ज पंचम और रानी विक्टोरिया के पुराने सिक्कों के चक्कर मे लोग कई गुणा अधिक कीमत चुकाकर नकली सिक्के घर ले आते हैं। जिनकी जितनी क्षमता कोई लाखो की खरीदारी करता है तो कोई चम्मच और झाड़ू खरीदकर ही लक्ष्मी जी को घर लाने की कौशिश में शनि-राहु को ले आता है। झाड़ू का ट्रेंड ऐसा बढ़ा है कि यह भी अनमोल वस्तु में शामिल हो गया है। आख़िर दिल्ली वाले सरजी का चुनाव चिन्ह भी तो है ऐसे में उसका भाव नहीं बढ़ेगा तो क्या हाथी का बढ़ेगा? 10-20 रुपये का झाड़ू भी धनतेरस पर 100 के पार चला जाता है। जबकि दीपावली पूजन के किसी भी विधि विधान और पुस्तक में इन सारी चीजों की खरीदारी का कोई जिक्र नहीं है। दीपावली दीपों का त्यौहार है। दीपावली 5 दिवसीय पर्वों की शृंखला है। समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी और धन्वंतरि का अवतरण हुआ उसी दिन से पंच दीप महोत्सव की शुरुआत होती है। धनतेरस यानी धन्वंतरि जयंती के बाद नरक चतुर्दशी भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के पश्चात हुए उत्साह के रूप में छोटी दीवाली मनाई जाती है। इस दिन सभी अपने घर के आगे यम का दीया भी जलाते हैं। दीपावली भगवान श्री राम में अयोध्या आगमन की खुशी में मनाई जाती है। इसी दिन लक्ष्मी ने विष्णु को अपने पति के रूप में वरण किया था। इसी तरह गोबर्धन पूजा और भाई दूज का अलग महत्व है। दीपावली का हर धर्म में अलग आस्था और महत्व है। सनातन के साथ-साथ सिख और जैन धर्मावलंबियों में भी दीवाली का अपना विशेष महत्व है। दीपावली का हर दिन एक विशेष आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य लिए हुए होता है। दीपावली में मिट्टी के दीपक को शुद्ध घी या तिल ले तेल से जलाने की परपंरा रही है। प्रथम पूज्य गणेश के बाद, प्रकाश पुंज दीप, धन के देवता कुबेर और समृद्धि स्वरूपा माता लक्ष्मी के साथ-साथ महाविद्या के रूप में बही-खाता और कलम की पूजा की जाती है। प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन पर पूरी नगरी को दीपों से सजाया गया था इसलिए घर-घर में दीप जलाकर अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व मनाया जाता है।
अतः बुद्धिमान बनिये, स्वस्थ रहिए, अच्छी पुस्तकें पढ़िए और माँ लक्ष्मी को प्रसन्न कीजिये। लक्ष्मी की भी पूजा बुद्धि के देव गणेश से ही होती है और माता लक्ष्मी सदैव उनके साथ ही विराजमान प्रसन्न रहती हैं। जहाँ बुद्धि और ज्ञान वहीं लक्ष्मी का वरदान।
कवि पंकज प्रियम
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