वेद और विज्ञान
चन्द्रयान के चाँद पर पहुँचने के बाद अतिबुद्धिजीवी वर्ग यह लिखने लगा है कि विज्ञान के बल पर हम चाँद पर पहुँचे, वेद-पुराणों का कोई महत्व नहीं। धर्म को पाखण्ड बताने वाले ऐसे लोगों ने न तो वेद को पढा है और न धर्म को जाना है। चन्द्रयान हो या सूर्ययान, हरेक नाम वेदों में वर्णित है। सूर्य हो चन्द्रमा नवग्रहों की तो हम सदियों से पूजा करते आ रहे हैं। पूरा ज्योतिष विज्ञान और पंचांग इन्ही ग्रह-नक्षत्रों पर आधारित है। हकीकत तो ये है कि विज्ञान ही वेदों पर आधारित है। आज जिन विषयों को विज्ञान खोज रहा है उसके विषय में बहुत पहले ही वेदों में लिखा जा चुका है। किसी भो वेद या पुराण को ध्यान से पढ़कर देखिये, आज का सम्पूर्ण विज्ञान भी उसके सामने अधूरा सा लगता है। कुछ लोग हमारी बात पर यकीन नहीं करेंगे कहेंगे कि आपने विज्ञान को पढ़ा है क्या? तो उन चपड़गंजुओं को ज्ञात हो कि मेरा बचपन ही वेद, पुराण, साहित्य और विज्ञान के बीच में ही बीता है। घर में 18 पुराण, चारो वेद, रामायण, महाभारत समेत सैकड़ों किताबें है। बचपन मे भले ही उनका मर्म नहीं समझा लेकिन कहानियों के रूप में ही उन्हें पढ़ने का सौभाग्य मिल गया। घर में कर्मकांड, ज्योतिष, साहित्य और संस्कृत के बड़े विद्वान होने के बावजूद मैंने विज्ञान चुना और प्राणिविज्ञान में प्रतिष्ठा हासिल करते हुए रसायन और भौतिकी भी खूब पढ़ी। इसी अध्ययन में मैंने पाया कि यह सब बातें तो पुराणों में लिखी है। जूलॉजी में जो एवोल्यूशन और रिप्रोडक्टिव सिस्टम पढ़ा वह सबकुछ तो गरुड़ पुराण में स्पष्ट वर्णित है। जिस दंड प्रणाली पर न्याय व्यवस्था लागू है वह भी गरुड़ पुराण में पहले से लिखा हुआ है। हमारे सनातन धर्म में जितने भी पर्व/त्यौहार, पूजा पाठ के नियम हैं हर किसी के पीछे आज का विज्ञान समाहित है। आज विज्ञान इस बात को मानता है को यज्ञ हवन के धुएं में इतनी ताकत होती है कि वातावरण से तमाम जीवाणुओं को नष्ट कर स्वच्छ कर सकता है। प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व आरती लेने की परंपरा है उसके पीछे भी वैज्ञानिक तथ्य है कि जब हम आरती लेते हैं तो कपूर की लौ सेनिटाइजर का काम करती है। हाथ के तमाम कीटाणु-विषाणु नष्ट हो जाते हैं। इसी तरह चरणामृत तांबे के बर्तन में रखी जाती है और सबको पता है की तांबे के लोटे में रखा पानी पीने से कई बीमारियों का नाश होता है। पुराने जमाने ल ताँबे का लोटा आज कॉपर बॉटल में जगह ले चुका है। प्रसाद और पंचामृत में तुलसीदल डाला जाता है। तुलसी के बारे किसी को बताने की जरूरत नहीं । जहाँ तुलसी का पौधा होता है वहाँ का वातारवण स्वच्छ होता है। तुलसी औषधीय गुणों के साथ ही इंडिकेटर का भी काम करती है। अगर प्रसाद में कोई जहरीला पदार्थ होगा तो तुलसी का पत्ता सूख जाएगा। अन्यथा गर्म खीर में भी तुलसी का पत्ता हरा ही रहता है कभी नहीं सूखता। हमारे धर्मग्रँथों में सात्विक आहार और सप्ताह में एक दिन उपवास का नियम है। विज्ञान भी मानता है कि सात्विक आहार और उपवास हमारे शरीर के लिए जरूरी है। आप नवरात्र में शक्ति की उपासना के लिए 9 दिनों तक सात्विक आहार लेते हैं। उन 9 दिनों में आपके अंदर एक अद्भुत शक्ति का संचार होता है। विज्ञान ने इस बात को माना है कि संख की ध्वनि से आसपास का वातावरण स्वच्छ होता है। शंखनाद से हमारे शरीर मे असीम शक्ति संचार होता है। इसी तरह मंदिरों में बड़े-बड़े घण्टे लगे होते हैं जिसे बजाने के बाद सर से पैर तक एक ऊर्जा हमारे भीतर प्रवेश करती है जो मन को शांत करने के सहायक होती है। सिर्फ सूर्य नमस्कार से सम्पूर्ण योग हो जाता है। कोरोना के दौरान लोगों ने सीखा की बाहर से आने के बाद हाथ-पैर धोकर सेनिटाइज होकर घर में आना चाहिए जिसे हमारे पूर्वज बहुत पहले से करते आ रहे थे। घर के बाहर ही हाथ-पैर धोने की व्यवस्था होती थी। किसी की।मृत्यु के बाद 13 दिनों का अंतिम संस्कार होता है जिसे कोरोना में लोगों ने इसोलेशन के रूप में जाना। जब किसी का अंतिम संस्कार कर लौटते हैं तो तमाम तरह के विषाणु/कीटाणु का प्रवेश हो जाता है ख़ासकर आग देने वाले जातक पर। इसीलिए उसे 13 दिनों तक अलग इसोलेशन में रखा जाता है। जब महिलाएं रजस्वला होती है तो उसके अंदर का शरीर हार्मोनल स्राव के कारण कमजोर हो जाता है। इसमें संक्रमण का खतरा होता है। साथ ही उस समय औरतों को अधिक आराम की जरूरत पड़ती है इसलिए पीरियड्स के दौरान उन्हें इसोलेशन में रखने का नियम बनाया गया था। इसी तरह अन्य बीमारी या महामारी में मरीजों को सबसे अलग रखा जाता था ताकि संक्रमण कम से कम हो। लेकिन हम उसे पिछड़ा, टैबू, पाखण्ड कचकर मजाक उड़ाते रहे। जब कोरोना आया तो सबने वही सब किया। दीवाली में घर की साफ-सफाई करने के नियम के पीछे भी कारण है कि बरसात में हमारे घर और आसपास कीट-पतंग और कीटाणुओं का बसेरा हो जाता है जिसे साफ-सफाई दीवारों की पुताई से खत्म किया जाता है। दीवाली की रात तेल के दिये जलाने से कीटाणुओं का नाश होता है। हमारे सनातन धर्म में हर पेड़-पौधे, नदी-तालाब, जीव-जंतु, धरा-गगन, सूर्यादि नवग्रहों के पूजन के पीछे उनके संरक्षण का पुनीत भाव बसा हुआ है। छठ, तीज, जितिया, दीवाली, दशहरा हर पर्व एक विशेष महत्व सन्देश को लेकर आता है। पीपल, नीम, बरगद, आंवला जैसे महत्वपूर्ण वृक्षों को धर्म के साथ जोड़कर संरक्षण किया गया। छठ में नदी, तालाब, गली, सड़क सबको स्वच्छ रखने की परम्परा शुरू हुई। आज विज्ञान जो भी खोज कर पा रहा है उसकी जड़ में वेद और पुराण ही है।
कवि पंकज प्रियम
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