Monday, September 16, 2024

998. मंज़िल

मंजिले मिलती उन्हीं को, जो समय के संग हो। 
ज़िन्दगी का हो सफ़र या, मौत-जीवन जंग हो।

हार में क्या? जीत में क्या?
प्रेम में क्या? प्रीत में क्या?

997. ज़िन्दगी बहार लगती है

ज़िन्दगी
ज़िन्दगी यार बड़ी, खुशगवार लगती है,
इश्क़ का फूल खिलाती, बहार लगती है।
पास आकर के कभी मौत मुस्कराये तो-
ज़िन्दगी धूप में ठंडी,  बयार लगती है।।
पंकज प्रियम 
16.09.2024