ज़िन्दगी का हो सफ़र या, मौत-जीवन जंग हो।
हार में क्या? जीत में क्या?
प्रेम में क्या? प्रीत में क्या?
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम