Tuesday, April 22, 2025

1009.आतंक का मज़हब

वो आये नाम पूछा
धर्म देखा और मार दी गोली
न ब्राह्मण देखा, न क्षत्रिय
न वैश्य और न ही शूद्र,
न अगड़ा, न पिछड़ा
न ऊंच न नीच
म सवर्ण न दलित
न जैन, न भीम 
न एसटी, एससी, ओबीसी
न यादव, न सिंह, न मिश्रा, न वर्मा
न जात देखी, न पात देखी
उनकी नजरों में तो बस हिन्दू थे
जिनके कपार पर ठोक दी गोली
छोड़ा तो सिर्फ उन्हें ही छोड़ा
जिन्होंने उनके कहने पर कलमा पढ़ा। 
आप लड़ते रहो जात-पात पर
उलझे रहो जातिगत जनगणना पर।
किसी को ब्राह्मणों पर मूतना है
किसी को भूरा बाल साफ करना है
किसी को एमवाई का साधन है गणित
कोई अगड़ा, पिछड़ा और दलित।
@पंकज प्रियम

Saturday, April 5, 2025

1008. जयचन्द



जयचन्द

तब भी कुछ जयचंद थे, अब भी हैं जयचंद।
जयचंदों ने ही किया, भारत का पट बंद।।

आक्रान्ता औकात क्या? कर पाते क्या वार?
साथ अगर देते नहीं,         देश छुपे गद्दार।।

सोने की चिड़िया कभी, आर्यावर्त अखण्ड।
खण्ड-खण्ड जिसने किया, देना होगा दण्ड।।

देश छुपे गद्दार को, अब लो सब पहचान।
जो हुआ नहीं देश का, क्या तेरा है जान।।

भारत माता कह रही,  कर लो अब संकल्प।
राष्ट्र बचा लो साथ मिल,  वक्त बचा है अल्प।।

पंकज प्रियम
05.04.2025