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Thursday, September 26, 2019

664.यशोधरा का प्रश्न

यशोधरा का प्रश्न

खुद को दुनिया में बतलाना शुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुध्द।

किसी की शवयात्रा को देखकर,
एक रात आधीरात को छोड़कर।
गहरी नींद में सोयी पत्नी और
दुधमुंहे बच्चे से यूँ मुँह मोड़कर।
गृहस्थ जीवन से होकर विमुख,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

एक पल के लिए सोचा नहीं,
किसके भरोसे छोड़ के जा रहे।
सात जन्मों जो किया था वादा,
यूँ इक पल में तोड़ के जा रहे।
अपने ही वादों से हो कर विरुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

हाँ आज भी पूछती है यशोधरा,
था आखिर क्या अपराध मेरा?
मुँह छुपाए इस तरह तेरा जाना,
दुनियां ने तुझे तो देवता माना।
देखा नहीं जीवन से मेरा युद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

तेरी जगह अगर मैं यूँ अकेले,
तुम्हें, घर और बच्चे को छोड़।
लाँघ लेती दहलीज मुँह अंधेरे,
मैं भी यूँ कर्तव्यों से मुँह मोड़।
खूब लाँछन होते मेरे सन्मुख,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

अपहृत लाचार विवश थी सीता,
लंका में कैद पर पवित्र थी गीता।
लेकिन कहाँ उसपे किया भरोसा,
ली गयी उसकी भी अग्निपरीक्षा।
तब दुनियां ने माना उसको शुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

मैं भी अगर सबकुछ यूँ छोड़कर,
घर परिवार सब से रिश्ता तोड़कर।
सत्य ढूढ़ने आधीरात निकल जाती
कुलटा विधर्मी जाने क्या कहलाती।
निश्चित मार्ग मेरा हो जाता अवरुद्ध,
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।

यशोधरा का जीवन जी कर देखो,
यूँ रोज जरा सा विष पी कर देखो।
कैसे हमने था तब खुद को संभाला,
कैसे अकेले  दुधमुंहे को था पाला।
करती रही खुद से ही खुद मैं युध्द,
आसान बहुत है यूँ बन जाना बुद्ध।

माना तुम्हें हो गया सत्य का ज्ञान,
मान लिया दुनियां ने भी भगवान।
कहाँ उत्तर मेरा कभी तुम दे पाये,
क्या दुनियां को फिर तुम समझाये।
सदा तुम मेरे प्रश्नों से होकर विमुख,
आसान बहुत है यूँ बन जाना बुद्ध

भावनाओं की मेरी तुम करके हिंसा,
क्या सिखाते जग को सत्य-अहिंसा।
जीवन से पलायन कोई पर्याय नहीं,
क्या इसके बिना कोई उपाय नहीं?
सत्य दिखा पर दिखा न मेरा दुःख
आसान बहुत है बन जाना बुद्ध।
©पंकज प्रियम
26/09/2019
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