समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मन में रख विश्वास, सदा तुम आगे बढ़ना,
हर खाई को पाट, पर्वत शिखर पे चढ़ना।।
कर बाधा को पार, तभी मंजिल पाओगे।
देखोगे पथ चार, निश्चय डूब जाओगे।।
©पंकज प्रियम