चीनी कम
तरेरी आँख जो फिर से, हमें पहचान तुम लोगे,
दिला मत याद बासठ की, नहीं तो जान तुम लोगे।।
पड़ोसी हो पड़ोसी की तरह रहना नहीं तो फिर-
अगर औकात पे आये, हमें फिर मान तुम लोगे।।
भरोसा था पड़ोसी पर, समझ आयी न मक्कारी,
किया था पीठ पर हमला, समझ आयी न गद्दारी।।
फ़क़त कुछ साल के अंदर, दिया मुंहतोड़ जब तेरा-
करो दिन याद सरसठ के, पड़ी ग़लती तुम्हें भारी।।
तुम्हारी आँख है छोटी, तुम्हारा दिल बहुत छोटा,
फ़टी सी जेब से निकला, लगे सिक्का कोई खोटा।।
अरे हम घोल के पीते, सदा *चीनी* को शरबत में-
मगर हम छोड़ भी देते , अगर मधुमेह जो होता।।
©पंकज प्रियम