Sunday, October 22, 2017

डिजिटल इंडिया। जीवन का आधार

जीवन का आधार
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बहुत कहते थे आधार
है जीने का अधिकार।
सच मे हुआ ये साकार
छीन तो लिया इसने
मासूम सन्तोषी के
जीवन का अधिकार।

भूख से मौत होती नही
दो जून की रोटी नही
भात भात हाहाकार
आधार ने जो किया इनकार।

हर गांव इंटरनेट नही
हर ठावँ जेनसेट नहीं
धुप्प फैला है अंधकार
सब चाहिए लिंक्ड आधार।

आदमी आदमी की पहचान नही
एक दूजे का सम्मान नही
ऑनलाइन जो मिल सके
अब तो उसे ही मानती सरकार।

अब तो डिजिटल सबकुछ
नही रहा हकीकत कुछ
मशीनें ही अब तय करती
जिन्दगी का सरोकार।

कुलीनों का हस्ताक्षर
अनपढ़ देते अंगूठा छाप
अब तो अंगूठे से तय होता
जीवन का सब आकार।

 जो न दे सके भूखे को निवाला
नई तकनीक बन जाये हाला
ऐसे सिस्टम पे लगा दो ताला
आधार प्रणाली रोक दो सरकार
ताकि फिर एक सन्तोषी का
न छीन जाय जीने का अधिकार।
.........पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
22.10.17