Sunday, October 20, 2024

999. शिव का मन

शिव का अंतर्मन
कैसे तुझे बताऊं गौरा, क्या कहता है मेरा मन।
सबने देखा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन।

काल का देव बनाया हमको, महाकाल सब कहते।
जग संहारक नाम दिया और मुझसे सब हैं डरते।
जग कल्याण के हेतु हरदम, हमने खुशियां त्यागी।
भोग विलास से दूर रहे हम, ध्यान योग वैरागी।
चिताभस्म में धूनी रमाये, व्याघ्रचर्म है मेरा वसन।
सबने देखा मृत्यु ताण्डव, देख न पाया सन्तुलन।
सबने देखा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन।

सागर के मंथन में अमृत, सब देवों ने पान किया।
देवता दानव सबने अपने, हिस्से धन का खान किया।
कालकूट का विष फैला तो, सबने मेरे नाम किया।
मेरे भक्तों ने ही मुझको, आज यहां बदनाम किया। 
गांजा फूँके भांग को पीते, मेरे नाम पे मद सेवन।
सबने हलाहल पीते देखा, देख न पाया मन क्रंदन।

कैसे तुझे बताऊं गौरा, क्या कहता है मेरा मन।
सबने देखा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन।
पंकज प्रियम

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