आओ ज्योति पर्व
मन से ईर्ष्या द्वेष मिटाकर,
नफरत का हर भेष मिटाकर।
प्रेम भाव सन्देश जगाकर,
सत्य सनातन दीप जलाएं
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
अंधकार पर प्रकाश की,
अज्ञानता पर ज्ञान आस की।
असत्य पर सत्य की,
पुनः एक जीत दुहरायें,
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
भूखा -प्यासा हो अगर,
बेबस लाचार ललचाई नज़र।
उम्मीद जगे तुमसे इस कदर,
कि दर्द में मरहम लेप लगायें,
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
अन्याय से ये समाज,
प्रदूषण-दोहन से धरा आज ।
असह्य वेदना से रही कराह
इस दर्द की हम दवा बन जायें,
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
भय आतंक -वितृष्णा बुझाकर
बुझती नजरो में आस जगाकर।
जाति-मज़हब का भेद मिटाकर
अमन-चैन के फूल खिलायें,
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
चहुँओर प्रीत की रीत जगाकर,
निर्मल निश्छल गीत बनाकर।
निर्झर का संगीत सजाकर,
मन से मन का मीत बनायें
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
आओ ज्योति पर्व मनाएं।
©पंकज प्रियम
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