समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
***** बुराई खत्म कर दिल का,नया आगाज तुम कर लो कहाँ देखा कल किसने,मुहब्बत आज तुम कर लो नहीं रावण जले कोई...कदम तुम राम के चलना बहा दो प्रेम की गंगा.....दिलों पे राज तुम कर लो। ©पंकज प्रियम
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