Wednesday, February 13, 2019

523. वक्त

वक्त

मुट्ठी से रजकण फिसल जाता है 
वक्त भी हर क्षण निकल जाता है.

नहीं करता इंतजार यह किसी का 
सूरज सा उगकर भी ढल जाता है.

चलता जो वक्त के साथ हर पल 
राह में गिरकर भी संभल जाता है.

किसी के हालात पे तू हंसना नही 
वक्त किसी का भी बदल जाता है.

नश्वर देह पर कैसा गुमान प्रियम
जो अपनों के हाथ जल जाता है.

-------पंकज प्रियम