ग़ज़ल
सुलग रहा क्यूँ वतन हमारा,
उजड़ रहा क्यूँ चमन हमारा।
लगी नज़र है यहाँ पे किसकी,
कहाँ पे खोया अमन हमारा।
पढ़ा लिखा हो विवेक तोड़ा,
यही युवा का जतन हमारा।
युवा प्रवर्तक विवेक स्वामी,
कदम तुम्हारे नमन हमारा।
सुकून खोया ख़बर तुझे क्या?
विलख रहा कैद मन हमारा।
ये रक्त रंजित लगे धरा क्यूँ?
तड़प रहा तन बदन हमारा।
सियासती खेल में "प्रियम" क्यूँ?
उलझ रहा आम जन हमारा।
©पंकज प्रियम