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Wednesday, April 21, 2021

910.ग़ज़ल आजकल

ग़ज़ल

चल रही है हवा मौत की आजकल,
बेवजह तू कभी भी न बाहर निकल।

फिर सुबह धूप होगी अभी रात जो,
है अँधेरा मगर तुम नहीं हो विकल।

रात तो ये गुजर जाएगी कल सुबह,
जो गुजर तू गया लौट पाये न कल।

मास्क पहनो अभी हाथ धोते रहो,
जंग ये जीत लेंगे तरीका बदल।

मौत से ज़िंदगी खींच लाये प्रियम,
बस भरोसा रखो वक्त के संग चल।
©पंकज प्रियम

Friday, November 6, 2020

888.फ़साने बहुत है


ग़ज़ल
बहर- 122*4
काफ़िया-आने
रदीफ़- बहुत है

मुहब्बत 'में तेरे बहाने बहुत हैं
लिखे मैंने' तुझपे फ़साने बहुत हैं।

दिखाना न मुझको कभी हुस्न जलवा,
सजी रूप की तो दुकानें बहुत है।

नज़र से तुम्हारा नज़र यूँ चुराना,
तुम्हारी नज़र के निशाने बहुत हैं।

निगाहों से' ऐसे न खंजर चलाओ,
भरे ज़ख्म दिल में पुराने बहुत हैं।

मुहब्बत में' यूँ तो तराने बहुत हैं,
प्रियम की ग़ज़ल के दिवाने बहुत हैं।
*©पंकज प्रियम*

Friday, September 4, 2020

874. आदमी

ग़ज़ल
इस क़दर आदमी आजमाया गया,
बेवज़ह भी उसे तो रुलाया गया।

दर्द से कब यहाँ फ़िक्र किसको हुई
ज़ख्म देकर तमाशा दिखाया गया।

दोष ईश्वर को देते मगर सच यही,
आदमी आदमी से सताया गया।

मुँह अगर खोलकर बोल दे जो कोई,
आँख उसको दिखाकर दबाया गया।

जो दिखाया कभी आइना तो प्रियम,
वो समझ रास्ते से हटाया गया।

कवि पंकज प्रियम

Tuesday, September 1, 2020

869. अभिमान कैसा

अभिमान कैसा?

ये नाम ये शोहरत ये सम्मान कैसा?
उधार की जिंदगी का अभिमान कैसा?

हरेक साँस पे तो धड़कनों का पहरा है,
यहाँ किसी को देना जीवनदान कैसा?

पलों से ज्यादा कहाँ ज़िन्दगी का वजूद,
हरेक उस पल में पलता अरमान कैसा?

हर्फ़ से ज़्यादा पढ़ा और लिखा क्या है?
फिर तेरा खुद को कहना विद्वान कैसा?

उसी के इशारों पे चलती है सबकी साँसे,
नाचती कठपुतलियों का स्वाभिमान कैसा?

कहाँ कुछ लेकर आये, क्या जाना है लेकर
फ़क़त चार दिनों में करता एहसान कैसा?

माटी में मिल जाएगा माटी का यह तन,
परिदों सा यूँ तेरा उड़ना आसमान कैसा?

यहीं रह जाएगा कमाया जो कुछ भी तूने
सफ़र है ज़िन्दगी तो सजाना सामान कैसा?

ईश्वर का ही सबकुछ, मिला जो भी है प्रियम, 
उसी का दिया उसी को करना दान कैसा?
©पंकज प्रियम

1 सितम्बर 2019

Monday, May 25, 2020

840.बेवफ़ा

बेवफ़ा/ग़ज़ल
हम वफ़ा करते रहे तुम,     बेवफ़ा क्यूँ हो गये?
इश्क़ की पूजा अगर की, तुम ख़ुदा क्यूँ हो गये?

मानकर तुझको ख़ुदा मैं, पूजने हरदम लगा,
बाखुदा हम हो गये तुम,   नाख़ुदा क्यूँ हो गये?

इश्क़ मज़हब इश्क़ पूजा, इश्क़ ही अरदास है,
हम इबादत कर रहे थे, तुम ख़फ़ा क्यूँ हो गये?

हमसफ़र तुझको समझकर, चल पड़े थे साथ में,
मोड़पर तुम छोड़कर ख़ुद,  लापता क्यूँ हो गये?

हम भटकते ही रहे यूँ, खोजते तब दर-ब-दर ,
हम ठहर कुछ पल गये तुम, रास्ता क्यूँ हो गये?

दिल समंदर में उठा था, इश्क़ का इक ज्वार जो,
तब लहर तूफ़ान बनकर, तुम हवा क्यूँ हो गये?

हर्फ़ को बस हर्फ़ से ही, जोड़कर कहता प्रियम,
हम ग़ज़ल कहते रहे तुम, दास्ताँ क्यूँ हो गये?

©पंकज प्रियम

Friday, May 22, 2020

838. दिले जज्बात

नमन साहित्योदय
दिन शुक्रवार
तिथि-22 मई
ग़ज़ल सृजन
क़ाफ़िया- आता
रदीफ़- है
बहर-1222*4

*दिले जज़्बात*
नज़र में डूबकर तेरे,  कदम जब लड़खड़ाता है,
अधर को चूम जो लेता, मुझे तब होश आता है।

नज़र के पास जब होती, बड़ा बेताब दिल होता,
चली तू दूर जब जाती, हृदय पल-पल बुलाता है।

तुम्हारी याद जब आती, मुझे बैचेन कर जाती,
तुम्हारे संग जो गुजरा, वो लम्हा याद आता है।

पवन से पूछता हरदम, बता तू हाल दिलबर का,
भला वो बिन मेरे कैसे, वहाँ हर पल बिताता है।

गगन में मेघ के जरिये, तुम्हें पाती सदा भेजूँ,
मगर पढ़के मेरे ख़त को, जलद आँसू बहाता है। 

तुम्हारा अक्स मैं अक्सर, चमकते चाँद में देखूँ,
मुहब्बत देखकर मेरी, ख़ुदा भी रश्क़ खाता है।

दिली जज़्बात जो कहता, कलम उसको ग़ज़ल कहती-
जरा देखूँ यहाँ कैसे,.........प्रियम रिश्ता निभाता है।

© पंकज भूषण पाठक प्रियम

Friday, May 8, 2020

831. सौदाई

नमन साहित्योदय
ग़ज़ल
2122 1122 1122 22
क़ाफ़िया-आई
रदीफ़- की

खो गया था मैं कभी प्यार में हरजाई की,
मैं समझ पा न सका बात वो रुसवाई की।

वो सदा प्यार जता यार बुलाता हमको,
थाह मैं पा न सका प्यार में गहराई की।

ख़ूब लूटते वो रहे प्यार दिखा कर मुझको,
आ गया था मैं तभी बात में सौदाई की।

मैं सदा फूल बहारों से सजाया उसको,
ज़िन्दगी में वो मगर यार सदा खाई की।

इश्क़ का रोग प्रियम और सताता कितना,
होश आया तो तभी प्यार की भरपाई की।
©पंकज प्रियम

Monday, May 4, 2020

826. फ़लसफ़ा मिल गया

ग़ज़ल
212*4
राह चलते कभी बेवफ़ा मिल गया,
ज़िन्दगी को तभी रास्ता मिल गया।

साथ छूटा तभी आँख मेरी खुली,
प्यार का इक नया वास्ता मिल गया।

हम जफ़ा को वफ़ा जो समझते रहे,
यार हमको सही फ़लसफ़ा मिल गया।

बेवफ़ा को वफ़ा की क़दर कब हुई,
मुफ्त में जो अगर बावफ़ा मिल गया।

ज़िदंगी की हकीकत यही है प्रियम,
बाखुदा को यहाँ नाख़ुदा मिल गया।

©पंकज प्रियम

Friday, May 1, 2020

823. देख लो

ग़ज़ल
2122 2122 2122 212
क़ाफ़िया-अल
रदीफ़ -कर देख लो

मौज सागर की हूँ मेरे सँग मचल कर देख लो,
वक्त की करवट नहीं जो तुम बदल कर देख लो।

सुरमई साँसों की सरगम इश्क़ इक संगीत है
प्यार की इस तान में तुम आज ढल कर देख लो।

है बड़ी फिसलन की राहें सोचकर रखना कदम,
इश्क की राहों मे चाहो तो फिसल कर देख लो।

आग का दरिया मुहब्बत यार सब हैं बोलते,
धार उसके डूब तुम मझधार जल कर देख लो।

डर अगर लगता तुम्हें तो छोड़ दो यह खेल तुम,
गर समझ लो प्रश्न तुम तो आज हल कर देख लो।

छू लिया है जिस्म सबने, रूह को जो छू सके,
प्रेम के तुम उस डगर में यार चल कर देख लो।

तुम रुहानी इश्क़ कर लो फिर प्रियम से बोलना,
आगे हद से प्यार मे पहले निकल कर देख लो।।

"©पंकज प्रियम

Friday, April 24, 2020

816. आग का दरिया


ग़ज़ल
रदीफ़- हैं
क़ाफ़िया- आते
212  1222    212 1222

रोज रात ख़्वाबों में, आके वो जगाते हैं,
नींद को उड़ाकर के, यार वो सताते हैं।

चाँद अफताबों सा, हुस्न तो दिखाये पर
बादलों में छुपकर के, यार वो जलाते हैं।

फूल बाग खुश्बू बन, वो फ़िज़ा बुलाये पर,
छू लिया अगर उनको, कांटे वो चुभाते हैं।

साँस मेरी थम जाती, धड़कने भी रुक जाती,
आसमां चढ़ाकर जब, प्यार से गिराते हैं।

इश्क़ रोग कैसा है, क्या *प्रियम* सुनाए अब?
आग का जो दरिया है, डूब पार जाते हैं।
©पंकज प्रियम

Friday, April 17, 2020

814. दर्द पाल कर देखो


ग़ज़ल
2122 1212 22
रदीफ़-कर देखो
क़ाफ़िया- आल

यार कुछ तो ख़्याल कर देखो,
आज मुझसे सवाल कर देखो।

देखता रोज चाँद को हरदम,
आज तुम तो निहाल कर देखो।

इश्क़ के आब कौन है डूबा?
हाथ दरिया में डाल कर देखो।

दर्द होता अगर नहीं तो फिर,
दिल में कुछ दर्द पाल कर देखो।

अब प्रियम और क्या सुनाएगा,
जख़्म अपना सँभाल कर देखो।

©पंकज प्रियम

Friday, April 3, 2020

804. कोरोना देखते देखते

ग़ज़ल

देख लो क्या हुआ देखते-देखते,
रोग कैसा बढ़ा देखते-देखते।

खौफ़ में सब अभी जी रहे हैं यहाँ,
चैन सबका लुटा देखते -देखते।

दर्द सबको यहाँ चीन ने जो दिया,
विश्व पूरा जला देखते-देखते।

कैद घर में हुए क्या ख़ता थी भला
दण्ड सबको मिला देखते-देखते।

मरकज़ों से बढ़ा रोकना है कठिन
बढ गया दायरा देखते-देखते।

थूकते हैं उन्हीं पे करे जो दवा
जग बना है बुरा देखते-देखते।

हाल अब क्या सुनाए *प्रियम* आपको,
दर्द सबको हुआ देखते-देखते।

©पंकज प्रियम

Tuesday, March 31, 2020

802. मुस्कुराओ अभी

ग़ज़ल
212 212 212 212
पास आकर जरा गुनगुनाओ अभी
हाल क्या है दिलों का सुनाओ अभी।

खौफ़ पसरा अभी है सरे राह में,
कैद घर मे रहो, मुस्कुराओ अभी।

चंद घड़ियां बची है अभी पास में,
आस जीवन जरा सा जगाओ अभी।

साथ मिलकर चलो जंग ये जीत लें,
मौत के खौफ़ को मिल हराओ अभी।

कश्मकश ज़िन्दगी साँस धड़कन रुकी
हौसला ज़िन्दगी का बढ़ाओ अभी।

©पंकज प्रियम
31 मार्च 2020

Friday, February 28, 2020

789. मर नहीं जाता

ग़ज़ल
क़ाफ़िया- अर
रदीफ़- नहीं जाता
1222 1222 1222 1222

जरूरत हो भले जितनी, किसी के  दर नहीं जाता,
बुलाये बिन कभी मैं तो, किसी के घर नहीं जाता।

लकीरों में लिखा जो भी, वही होता यहाँ अक्सर,
किसी के चाहने भर से, यहाँ मैं मर नहीं जाता।

सफ़र में साथ गर हो तो, सफ़र आसान हो जाता,
अकेले भी चलूँ तो क्या, कभी मैं डर नहीं जाता।

जवानी चंद रातों की, नहीं मग़रूर तुम होना,
चमक ये चाँदनी पाकर, कभी मैं तर नहीं जाता।

"प्रियम" का साथ पाने को, सभी बैचेन हैं रहते,
तड़पती है कई जानें , अगर छूकर नहीं जाता।

©पंकज प्रियम

Saturday, January 25, 2020

782. तिरंगा

हिंदुस्तान

मन में गंगा कफ़न तिरंगा, एक यही अरमान है,
मेरे दिल की हर धड़कन में बसता हिंदुस्तान है।

आँखों में पलते ख़्वाब बड़े, हौसला सागर के जैसा,
रखते आग हैं सूरज का और चंदा की मुस्कान है।

मन है विश्वास भरा और तन में जोश जवानी का,
वतन की ख़ातिर मरना जीना, वतन हमारी जान है।

हम सृजन के बीज धरा में, उगकर छूते अम्बर को,
मेहनत की हम रोटी खाते, दीन धरम ईमान है।

जाति-धर्म और मज़हब से, ना रिश्ता है नफ़रत से
दिल में रखता भारत प्रियम, सच्चा एक इंसान है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Sunday, November 17, 2019

726. ख़बर का असर

ख़बर का असर
ग़ज़ल
122 122 122 122
ख़बर का असर भी होता है साहब,
ख़बर का मुक़द्दर भी होता है साहब।

अगर बात को जब घुमाया गया तो,
उसी बात से डर भी होता है साहब।

ख़बर में कभी जो मसाला लगाया
वही एक नश्तर भी होता है साहब।

लिखो बात वो तुम ख़बर जो सही है,
गलत बात ख़ंजर भी होता है साहब।

प्रियम" ने लिखा जो हकीकत वही है,
ख़बर का कहर भी होता है साहब।
©पंकज प्रियम

Friday, November 15, 2019

723. हर रोज़ मज़ा लो

221 1221 1221 122
आवाज़ लगा आज मुहब्बत को बुला लो,
नाराज़ न हो जाय कहीं दिल तो मिला लो।

खुदगर्ज़ जमाने से भला और सितम क्या?
साँसें न बिखर जाय कहीं फूल खिला लो।

ये प्यार मुहब्बत की डगर चाहते चलना,
काँटों से भरी राह को फूलों से सजा लो।

किरदार निभाना तुझे जीवन ने दिया जो,
जीवन के सफ़र में तो यहाँ रोज़ मज़ा लो।

हर राज़ को सीने में दफ़न कर न प्रियम तू
अल्फ़ाज़ न खो जाय कहीं साज़ बजा लो।
©पंकज प्रियम
15/11/2019

722. वतन हमारा

ग़ज़ल

सुलग रहा क्यूँ वतन हमारा,
उजड़ रहा क्यूँ चमन हमारा।

लगी नज़र है यहाँ पे किसकी,
कहाँ पे खोया अमन हमारा।

पढ़ा लिखा हो विवेक तोड़ा,
यही युवा का जतन हमारा।

युवा प्रवर्तक विवेक स्वामी,
कदम तुम्हारे नमन हमारा।

सुकून खोया ख़बर तुझे क्या?
विलख रहा कैद मन हमारा।

ये रक्त रंजित लगे धरा क्यूँ?
तड़प रहा तन बदन हमारा।

सियासती खेल में "प्रियम" क्यूँ?
उलझ रहा आम जन हमारा।

©पंकज प्रियम

720. मुहब्बत

122 122 122 122
मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत हमारी,
सलामत रहे प्यार चाहत हमारी।

नहीं ख़्वाब कोई नहीं चाह कोई,
नहीं कोई तुझसे शिकायत हमारी।

नहीं फूल गुलशन, नहीं चाँद तारे,
नहीं झूठ कहने की आदत हमारी।

लिखेगा जमाना फ़साना हमारा,
बनेगी कहानी ये उल्फ़त हमारी।

प्रियम की मुहब्बत तुम्हारी जवानी,
दिलों के शहर में रियासत हमारी।
©पंकज प्रियम

Thursday, November 14, 2019

719. मुलाक़ात

ग़ज़ल
मुलाकात
122 122 122 122
नज़र की नज़र से मुलाकात होगी,
दिलों की दिलों से तभी बात होगी।

कभी जो नज़र ये हमारी मिलेगी,
यकीनन सितारों भरी रात होगी।

मिलेगी नज़र जब हमारी तुम्हारी,
सुहाना सहर और जवां रात होगी।

चलेंगे तुम्हें साथ लेकर सफ़र जो,
हमारे डगर फूल बरसात होगी।

प्रियम को तुम्हारी मुहब्बत मिले तो,
भला और क्या कोई सौगात होगी।
©पंकज प्रियम