Monday, April 6, 2020

809. उम्मीद


दोहे- उम्मीद/आस/भरोसा

मन मे रख उम्मीद तू, जीने की रख आस।
कोरोना का खौफ़ भी, आए न कभी पास।।

रखते जो उम्मीद हैं, जीवन में सब  रंग।
मन से जो हारा यहाँ, कब जीता वह जंग।।

मन को जीता जो यहाँ, होती उसकी जीत।
हार गया जो आप से, हारे जीवन प्रीत।।

डोर भरोसे से जुड़ी, जीवन की सब रीत।।
टूट गयी यह डोर जो, खो जाये मनमीत।।

जो घबराते कष्ट से, छोड़े जो उम्मीद।
समझो हारी ज़िन्दगी, उड़ जाती है नींद।।

©पंकज