समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
नाथ कहो शिवनाथ कहो तुम, बमबम भोलेशंकर प्यारे। गङ्गजटाधर चन्द्र सुशोभित, सर्प सजाये तन में सारे।। हाथ त्रिशूल सुसज्जित डमरू, नन्दी बैल चढ़े त्रिपुरारे। भक्तन को मझधार उबारत, दुष्टन को खुदनाथ सँहारे।।
© पंकज प्रियम