पंकज भूषण पाठक
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किसी व्यक्ति ,समाज या देश के लिए 14 साल बहुत मायने रखता है। एक युग बदल जाता है समाज का आईना बदल जाता है। भगवान राम का वनवास हो या फिर उम्रकैद की सजा 14 साल एक लम्बा वक्त होता है बदलाव का। इसे संयोग कहे या फिर 14 का महत्त्व ,खास मायने रहा है इस अंक का। रामायण के मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को पिता ने 14 वर्ष का वनवास दिया तो महाभारत के नायक पाण्डु पुत्रों को भी 14 साल तक जंगल में भटकना पड़ा। जुए में पराजित होने की सजा उन्होंने 13 साल वनवास और एक साल के अज्ञातवास के रूप में काटी। अब ये रामायण वनवास से प्रेरित सजा की अवधि थी या महज संयोग लेकिन 14 साल कानून की किताब में भी उम्रकैद की सजा मुक़र्रर कर दी गयी। यही नही किसी आरोपी को सबसे पहले 14 दिनों के लिए ही न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है। मतलब की 14 का खास महत्त्व है हमारे इतिहास में। 14 साल की दहलीज पर व्यक्ति किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश कर रहा होता है.नए सपने उड़ान भरने को तैयार हो रहे होते हैं। यही वो वक्त होता है जब हम शिक्षा की पहली बेरिकेटिंग यानि बोर्ड की परीक्षा दे रहे होते हैं। इसके बाद ही हमारे सामने उन्मुक्त आकाश होता है सपनो की उड़ान भरने को। आज झारखण्ड भी 14 वर्ष का दहलीज पार कर 15 वें साल में प्रवेश कर रहा है। बिहार से अलग होकर झारखण्ड राज्य का गठन 14 -15 नवंबर की रात हुआ था। राज्य गठन के साथ ही बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। राज्य के गठन के साथ ही केंद्रीय नेताओं ने राज्य के विधायकों को कमतर आँकने का जो सिलसिला शुरू किया वह बदस्तूर जारी है। हर मोड़ पर झारखंड का फैसला दिल्ली में होता है। राज्य बना तो विधायकों में से नेता चुनने के बजाय सांसद बाबूलाल मरांडी को केंद्रीय मंत्रिमंडल से निकालकर राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल से निकालकर मरांडी को राँची पहुँचा देने के पीछे दलील दी गई कि भाजपा आलाकमान ने युवा नेता को संसदीय चुनाव में झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन को पटखनी देने का तोहफा दिया। आदिवासी बहुलता के आधार पर अलग हुए इस राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री को कुर्सी सौप लोगों ने सोचा की उनका सही मायनो में विकास होगा। अपने प्रदेश में उन्हें अपना हक़ अधिकार और सम्मान मिलेगा। बड़ी हसरती नजरों से सूबे की पौने तीन करोड़ आबादी सरकार की और देख रही थी।खनिज सम्पदा से धनी झारखण्ड की भूखी अधनंगी बेहाल जनता को मानो रामबाण मिल चूका था उन्हें लगा की अब उनकी भूख मिट जाएगी ,सबको रोजगार मिल जाएगा। अबुआ राज में उन्हें सुराज दिखने लगा लेकिन उनके सपने तब चूर चूर हो गए जब मरांडी की सरकार भी सियासी शतरंज की चाल चलने लगी। मरांडी ने डोमेसाइल की ऐसी आग लगायी की पूरा प्रदेश बाहरी -भीतरी की हवा से धु-धु कर जल उठा। दो साल पूरा करते-करते पार्टी विद डिफ्रेंस वाली मरांडी की सरकार दम तोड़ गई। भीतरघात की शिकार बीजेपी ने चेहरा और चाल बदलते हुए अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया और मरांडी सरकार गिराने वाले विधायकों से समर्थन लिया। युवा मुख्यमंत्री के रुप में अर्जुन मुंडा से भी लोगो ने उम्मीदे पाली और राज्य से सबसे अधिक दिनों तक उन्हें शासन का मौका भी दिया लेकिन सूबे की आदिवासी जनता मुंडा से भी निराश हुई। इसी तरह गुरूजी यानि शिबू सोरेन ,मधु कोड़ा और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सभी आदिवासी चेहरे जिनपर आदिवासिओं ने पूरा भरोसा किया लेकिन आज भी ये तबका खुद को ठगा महसूस कर रहा है।
१५ नवम्बर २००० | १८ मार्च २००३ | बाबूलाल मरांडी | भाजपा |
१८ मार्च २००३ | २ मार्च २००५ | अर्जुन मुंडा | भाजपा |
२ मार्च २००५ | १२ मार्च २००५ | शिबू सोरेन | झामुमो |
१२ मार्च २००५ | १८ सितंबर २००६ | अर्जुन मुंडा | भाजपा |
१८ सितंबर २००६ | २८ अगस्त २००८ | मधु कोडा | निर्दलीय |
२८ अगस्त २००८ | 18 जनवरी २००९ | शिबू सोरेन | झामुमो |
19 जनवरी २००९ | 29 दिसम्बर २००९ | राष्ट्रपति शासन | |
30 दिसम्बर २००९ | 31 मई २०१० | शिबू सोरेन | झामुमो |
1 जून २०१० | १० सितम्बर २०१० | राष्ट्रपति शासन | |
11 सितम्बर 2010 | 18 जनवरी 2013 | अर्जुन मुंडा | भारतीय जनता पार्टी |
18 जनवरी 2013 | 13 जुलाई 2013 | राष्ट्रपति शासन | |
13 जुलाई 2013 | वर्तमान | हेमंत सोरेन | झारखंड मुक्ति मोर्च |
सियासी प्रयोगशाला का केंद्र रहा है झारखण्ड
सन 2000 में राज्य का गठन होने के बाद भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी इस राज्य के पहले सीएम बने. नवम्बर महीने में उन्होंने झारखंड की सत्ता संभाली. मार्च, 2003 में इस राज्य ने पहली राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया. बाबूलाल मरांडी से नाराज तत्कालीन समता पार्टी एवं वनांचल कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस लेकर उनके हाथ से कुर्सी खींच ली. पर राज्य का प्रभार देख रहे राजनाथ सिंह ने फिर जोड़-तोड़ करके मरांडी को हटाकर अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में फिर से भाजपा की सरकार का गठन करा दिया. उठा पटक और धमकी के बीच किसी तरह से अर्जुन मुंडा ने कार्यकाल पूरा किया. वर्ष 2005 में हुए दूसरे विधानसभा के चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा का गठन होने के बाद पहली बार शिबू सोरेन राज्य के सीमए बने. पर वे नौ दिन से ज्यादा नहीं टिक पाए. बहुमत साबित नहीं होने के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. शिबू के इस्तीफा देने के बाद अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में एक बार फिर भाजपा की सरकार का गठन हुआ. लेकिन कांग्रेस ने निर्दलीय मधु कोड़ा को सरकार से अलग करके सितम्बर 2006 में अर्जुन मुंडा की सरकार को गिरा दिया. इसके बाद किसी भी राज्य में पहली बार निर्दलीय विधायक के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ. मधु कोड़ा राज्य के सीएम बने. मात्र अपने 23 माह के कार्यकाल में कोड़ा ने जो गुल खिलाए वो इतिहास बन चुका है. अरबों रुपये के भ्रष्टाचार के आरोप में झारखंड का यह पूर्व सीएम जेल की हवा खा चूका है. कोड़ा की सरकार के गिर जाने के बाद अगस्त, 2008 में शिबू सोरेन दूसरी बार राज्य के सीएम बने. लेकिन वे इस बार भी छह महीने से ज्यादा समय तक सीएम की कुर्सी पर काबिज नहीं रह पाए. विधान सभा चुनाव राजा पीटर से हारने की वजह से उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. उन्होंने जनवरी, 2009 में इस्तीफा दे दिया.इसके बाद पहली बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. लगभग एक सालों तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा रहा. 2009 अंतिम महीनों में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य में फिर से त्रिशंकु विधान सभा का गठन हुआ. 23 दिसम्बर को विधानसभा के गठन की अधिसूचना जारी होने के बाद शिबू सोरेन ने तीसरी बार भाजपा के सहयोग से राज्य की सत्ता संभाली. राज्य में बीजेपी के सहयोग से सरकार चला रहे गुरुजी ने अप्रैल 2010 में लोकसभा में केंद्रीय बजट पर भाजपा के कटौती प्रस्ताव के विरोध में यूपीए का समर्थन कर दिया. नाराज बीजेपी ने मई, 2010 में झामुमो सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार गिर गई. किसी भी दल के पास सरकार बनाने लायक संख्या बल न होने के चलते राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लगा. लगभग पांच महीने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू रहने के बाद झामुमो ने बिना शर्त भाजपा को समर्थन देने की घोषणा की, जिसके बाद सितम्बर, 2010 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हुआ. मुंडा तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. लेकिन यह गठबंधन भी अधिक दिनों तक नही चल सका। स्थानीय नीति समेत कई सवालों के चक्रव्यूह में अर्जुन मात खा गए और जनवरी 2013 में झामुमो ने मुंडा सरकार से समर्थन वापस लेकर राज्य में ग्यारहवीं सरकार के गठन का रास्ता तैयार कर दिया.18 जनवरी 2013 को अर्जुन मुंडा ने इस्तीफा सौपते हुए विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी। लेकिन केंद्र सरकार ने विधानसभा भंग करने की वजाय सूबे में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन की मंजूरी दे दी। 6 माह बीतते ही राज्य में सियासी खिचड़ी पकने लगी और झामुमो -कांग्रेस -राजद की तिकड़ी ने नई सरकार बना ली। इसबार ताज शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन के सर सजा और 13 जुलाई 2013 को उन्होंने युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। सियासी तिकड़म और अस्थिरता के हिचकोले खाती हेमंत सरकार ने एक साल पूरा कर लिया। हालाँकि इस सरकार में अंदर -बाहर खूब घमासान मचता रहा है। सहयोगी दलों के ही मंत्री नही वल्कि सत्ताधारी नेताओं ने भी मुख्यमंत्री के कामकाज पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिया। नतीजतन कांग्रेस कोटे के मंत्री चंद्रशेखर दुबे उर्फ़ ददई दुबे को मंत्री पद से बर्खास्त किया गया। बोलबच्चन के शिकार झामुमो कोटे के मंत्री साइमन मरांडी भी हुए। इसी बीच लोकसभा चुनाव के दौरान सीटों के बटवारे को लेकर भी खूब धींगामुश्ती हुई। झामुमो -कांग्रेस के कई विधायक दूसरे दलों में शामिल हो गए लेकिन इससे सरकार की सेहत पर कोई असर नही पड़ा। नक्सलिओ के साथ साठगांठ के आरोप में कोंग्रेस कोटे के एक और मंत्री योगेन्द्र साव भी बर्खास्त कर दिए गए। उनकी जगह बन्ना गुप्ता को जगह मिली। खैर घोटाले और घपलो के बदनाम झारखण्ड में ऐसी घटनाओं के लोग आदी हो चुके हैं। राजनीतिक अस्थिरता और सियासी तिकड़मों के बीच न तो यहाँ के आदिवासिओं को उनका अधिकार मिल सका है और ना ही सूबे का सही मायनों में विकास हो सका है। गठबंधन की सरकारों ने अपना अधिकांश समय कुर्सी की खींचतान में ही बिता दिया जिसका नतीजा ये हुआ की खनिज सम्पदाओ से परिपूर्ण झारखण्ड विकास के आखरी पायदान पर पहुंच गया है।
अब जबकि झारखण्ड में चुनावी रणभेरी फूकीं जा चुकी है तो एक उम्मीद की जा सकती है की भगवान राम और पांडवो की तरह राज्य का भी सियासी वनवास ख़त्म हो। केंद्र में बनी बहुमत की सरकार के बाद अब इस राज्य में भी पूर्ण बहुमत की मजबूत सरकार की जरुरत महसूस हो रही है।साथ ही एक ऐसे नेतृत्व की और सभी टकटकी निगाहों से देख रहे है जो केवल अपनी कुर्सी नही राज्य के विकास की चिंता करे।
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