Friday, October 24, 2014

हम पत्रकार हैं


जहाँ पे समझते अपना अधिकार हैं।
ना बन्दूक न गोली,बारूद न गोला
ताकत हमारी बोली,खद्दर का झोला
कलम को समझते अपना हथियार हैं।
तभी तो लोग कहते हमे पत्रकार है ।
दुनिया बन जाती बैरी मगर
हमे तो रहता सभी से प्यार है
लोग कहते छोडो ये धंधा
कुछ नही यहाँ सब बेकार है।
कैसे छोड़ दूँ इसको जिसे
फांकाकशी में भी किया बहुत प्यार है।
रगों में बह रहा शब्दों का कतरा
मंजूर है सांसो का पहरा
खानाबदोशी भी स्वीकार है।
क्युकी अब जीवन एक अख़बार है।
औरों की हंसी में ढूढ़ते हम ख़ुशी
मौत मुकद्दर मुफलिसी के हमनशीं
अन्याय से लड़ना अपना अधिकार है
हर ताल कदमताल हम सरकार हैं
जग के पहरुआ सजग हम पत्रकार हैं।
---------------पंकज भूषण पाठक "प्रियम "

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