टॉयलेट एक प्रेम कथा-
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फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता है और ऐसी अनगिनत फ़िल्में है जो समाज की कुरीतियों,रूढ़िवादिता और सरकारी व्यवस्था पर चोट करती रही है। सरकार कई कल्याणकारी योजनाएं चलाती रही है लेकिन अबतक सारी योजनाये सरकारी ही बन कर रह गयी है जनता का सीधे उससे जुड़ाव नही हो सका जिसके कारणों पर अलग से बहस की जा सकती है। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन एक जनांदोलन के रूप में बढ़ती जा रही है। जिसमे कोई एक खास तबका नही वल्कि समाज का हर एक अंग और संपूर्ण सरकारी महकमा एक सूत्र में बंधता दिख रहा है। सरकारी योजनाओं पर कई विभागीय डॉक्यूमेंट्री और लघुफिल्मे बनी है लेकिन स्वच्छ भारत मिशन ने बॉलीवुड के कमर्शियल फिल्मकारों को भी इस मुद्दे पर फिल्म बनाने पर मजबूर कर दिया और टॉयलेट एक प्रेम कथा के रूप में दर्शकों के समक्ष इस कदर रखा है कि लोग निश्चय ही इस सामान्य सी बात पर सोचने और चर्चा करने लगे है जिसपर कभी कोई खुल कर बात करना नही चाहता था। शौच मलतब झाड़ी, जंगल और पटरियों के किनारे धुप्प अंधेरों का नितान्त निजी मसला होता था। आज हर कोई इस बात पर बहस करने को तैयार है। जाहिर है इस मिशन को कामयाब होने से कोई रोक नही सकता।
शौचालय की थीम पर बनी एक ऐसी फिल्म जो न केवल खुले में शौच की सोच और रूढ़िवादी विचारधारा पर कुठाराघात करती है बल्कि स्वच्छ मनोरंजन के जरिये समाज तक स्वच्छता का संदेश देने में कामयाब होती है।
हालिया दिनों में खुले में शौच और शौचालय को लेकर उठे जनांदोलन की कहानी पर बेहतर स्क्रिप्ट और संवाद के जरिये फ़िल्मकार ने जो सन्देश देने की कोशिश की है बेशक समाज में जागरूकता का अलख जगाने का कार्य करेगी। यूँ तो फिल्म की पूरी कहानी शौचालय के इर्द गिर्द घूमती है जिसमे शौचालय के लिए एक पत्नी का घर छोड़ के जाना और इस मुद्दे पर तलाक को केंद्र विंदु बनाकर बड़े ही रूमानी तरीके से दर्शाने की कोशिश की गयी है। साधारण कहानी को बड़े ही असाधारण तरीके से एक कमर्शियल फिल्मो के सारे मसालों का इनपुट डालकर दर्शाया गया है। यूपी के ठेठ गंवई परिवेश में सजी संवरी इस फिल्म में बिलकुल ही यथार्थ को प्रस्तुत किया गया है जो दर्शकों को अंत तक अपनेपन से जोड़े रखता है ।फ़िल्मकार ने समाज की पुरानी सोच के साथ साथ सरकारी सिस्टम पर भी जोरदार तमाचा लगाया है। फिल्म में मीडिया की किसी मुद्दे पर जनांदोलन तैयार करने की ताकत और उसकी सकारात्मक भूमिका पर भी जोर दिया गया है।
ये फिल्म निश्चय ही ग्रामीणों को ट्रिगर करने में एक सशक्त हथियार का काम करेगी।
✍🏻पंकज भूषण पाठक
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फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता है और ऐसी अनगिनत फ़िल्में है जो समाज की कुरीतियों,रूढ़िवादिता और सरकारी व्यवस्था पर चोट करती रही है। सरकार कई कल्याणकारी योजनाएं चलाती रही है लेकिन अबतक सारी योजनाये सरकारी ही बन कर रह गयी है जनता का सीधे उससे जुड़ाव नही हो सका जिसके कारणों पर अलग से बहस की जा सकती है। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन एक जनांदोलन के रूप में बढ़ती जा रही है। जिसमे कोई एक खास तबका नही वल्कि समाज का हर एक अंग और संपूर्ण सरकारी महकमा एक सूत्र में बंधता दिख रहा है। सरकारी योजनाओं पर कई विभागीय डॉक्यूमेंट्री और लघुफिल्मे बनी है लेकिन स्वच्छ भारत मिशन ने बॉलीवुड के कमर्शियल फिल्मकारों को भी इस मुद्दे पर फिल्म बनाने पर मजबूर कर दिया और टॉयलेट एक प्रेम कथा के रूप में दर्शकों के समक्ष इस कदर रखा है कि लोग निश्चय ही इस सामान्य सी बात पर सोचने और चर्चा करने लगे है जिसपर कभी कोई खुल कर बात करना नही चाहता था। शौच मलतब झाड़ी, जंगल और पटरियों के किनारे धुप्प अंधेरों का नितान्त निजी मसला होता था। आज हर कोई इस बात पर बहस करने को तैयार है। जाहिर है इस मिशन को कामयाब होने से कोई रोक नही सकता।
शौचालय की थीम पर बनी एक ऐसी फिल्म जो न केवल खुले में शौच की सोच और रूढ़िवादी विचारधारा पर कुठाराघात करती है बल्कि स्वच्छ मनोरंजन के जरिये समाज तक स्वच्छता का संदेश देने में कामयाब होती है।
हालिया दिनों में खुले में शौच और शौचालय को लेकर उठे जनांदोलन की कहानी पर बेहतर स्क्रिप्ट और संवाद के जरिये फ़िल्मकार ने जो सन्देश देने की कोशिश की है बेशक समाज में जागरूकता का अलख जगाने का कार्य करेगी। यूँ तो फिल्म की पूरी कहानी शौचालय के इर्द गिर्द घूमती है जिसमे शौचालय के लिए एक पत्नी का घर छोड़ के जाना और इस मुद्दे पर तलाक को केंद्र विंदु बनाकर बड़े ही रूमानी तरीके से दर्शाने की कोशिश की गयी है। साधारण कहानी को बड़े ही असाधारण तरीके से एक कमर्शियल फिल्मो के सारे मसालों का इनपुट डालकर दर्शाया गया है। यूपी के ठेठ गंवई परिवेश में सजी संवरी इस फिल्म में बिलकुल ही यथार्थ को प्रस्तुत किया गया है जो दर्शकों को अंत तक अपनेपन से जोड़े रखता है ।फ़िल्मकार ने समाज की पुरानी सोच के साथ साथ सरकारी सिस्टम पर भी जोरदार तमाचा लगाया है। फिल्म में मीडिया की किसी मुद्दे पर जनांदोलन तैयार करने की ताकत और उसकी सकारात्मक भूमिका पर भी जोर दिया गया है।
ये फिल्म निश्चय ही ग्रामीणों को ट्रिगर करने में एक सशक्त हथियार का काम करेगी।
✍🏻पंकज भूषण पाठक
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