*ऋतुराज बसन्त- मौसम मुहब्बत का*
✍पंकज प्रियम
"आया है बसंत तो, बसंती महक जाने दो।
मौसम है मोहब्बत का, थोड़ा तो बहक जाने दो।"
-पंकज प्रियम
मौसम है मोहब्बत का, थोड़ा तो बहक जाने दो।"
-पंकज प्रियम
वाकई बसंत की बात ही निराली है इसे यूँ ही ऋतुराज नहीं कहा जाता है। सभी ऋतुओं में बंसत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इसकी आवोहवा ही ऐसी है कि *धरती-अम्बर, वन-पवन समंदर,*
*समाहित सब हीं बसंत के अंदर।*
*समाहित सब हीं बसंत के अंदर।*
बसंत को प्यार का मौसम भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण ने भी कहा कि ऋतुओं में मैं बसंत हूँ। माघ शुल्क पँचमी यानी सरस्वती पूजा के दिन बसंत ऋतु का आरम्भ होता है। इसी दिन भगवान शिव का तिलकोत्सव भी मनाया जाता है। माघ-फाल्गुन और चैत्र मास बसंत के माने जाते हैं। अंग्रेजी महीनों में फरवरी से लेकर अप्रैल मध्य तक का समय बसंत ऋतु का होता है। सर्दी खत्म हो जाती और मौसम सुहाना होने लगता है। पेड़ों में नए पत्ते और फूल आने लगते हैं। आम के पेड़ मंजरों से बौराने लगते हैं। धरती रंग-बिरंगे और सरसों के पीले फूलों की चादर ओढ़ लेती है। पहाड़ी इलाकों में जमी बर्फ की चादर पिघलने लगती है और लोगों को गुलाबी धूप के दर्शन होने लगते हैं। चारो ओर हरियाली छा जाती है। हवा भी बौरा कर झूम उठती है ।
हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ।
हवा हूँ हवा मैं बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ।
पुराणिक कथाओं के अनुसार बसंत को कामदेव का पुत्र कहा जाता है। कामदेव के घर पुत्र के जन्म लेने से पूरी प्रकृति भी झूम उठती है। कलियाँ खिलने लगती है। पेड़ नव पल्लव से पालना बनाते हैं, हवाएँ भी बसंत राग गुनगुनाते हुए उसे झुलाती है और कोयल अपनी मीठी बोली से गीत सुनाकर उसे बहलाती है। बागों में सखियाँ झूले लगाकर झूमती गाती है। बसंत के आते ही मानो पूरी कायनात मदमस्त हो जाती है।
भारत में बसंत ऋतु में ही बसंत पंचमी, शिवरात्रि और होली का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में बड़े धूमधाम से बसन्तोत्सव मनाने का जिक्र किया गया है। राजा-महाराजा अपनी रानियों के साथ, राजकुमारी अपनी सखियों, प्रेमी-प्रेमिकाओं के साथ बाग/बगीचे में महीनों तक बसन्तोत्सव मनाते रहते थे। कालांतर में इसे पाश्चात्य देशों ने वेलेंटाइन डे के नाम से अंगीकार कर प्रसारित करना शुरू कर दिया। जिसकी आड़ में अश्लीलता और फूहड़ता होने लगी। होली भी बसन्तोत्सव के स्वरुप से बिगड़ती चली गयी।
भारत में बसंत ऋतु में ही बसंत पंचमी, शिवरात्रि और होली का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में बड़े धूमधाम से बसन्तोत्सव मनाने का जिक्र किया गया है। राजा-महाराजा अपनी रानियों के साथ, राजकुमारी अपनी सखियों, प्रेमी-प्रेमिकाओं के साथ बाग/बगीचे में महीनों तक बसन्तोत्सव मनाते रहते थे। कालांतर में इसे पाश्चात्य देशों ने वेलेंटाइन डे के नाम से अंगीकार कर प्रसारित करना शुरू कर दिया। जिसकी आड़ में अश्लीलता और फूहड़ता होने लगी। होली भी बसन्तोत्सव के स्वरुप से बिगड़ती चली गयी।
इन सब चीजों को छोड़कर अगर बसन्त को दिल से महसूस कीजिये तो तन और मन से समृद्ध हो जाते हैं।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
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