Saturday, February 1, 2020

784. तारीख़ पे तारीख़

तारीख़ पे तारीख

कौन बचा रहा दरिंदो को?
फिर क्यूँ टली दरिंदो की फाँसी?
अपनी बेटी को इंसाफ़ दिलाने को
लड़ रही एक माँ को चुनौती दे गया वकील
अनन्तकाल तक नहीं होने देंगे फाँसी!
आज वकील ने चुनौती दी
कल तो उसकी जान भी ले सकता है!
जैसे गवाहों और परिजनों के साथ होता रहा है.
न्यायालय बेवश कानून के दल्लों के आगे।
रखैल बना रखा है कानून को ऐसे वकीलों ने,
एक माँ के आँसू क्या तुम्हें सोने देंगे?
क्या दो निवाले मुँह में भर पाओगे?
कैसे बीवी-बेटी को गहने दोगे खरीदकर
दरिन्दों को बचाने के एवज में मिले पैसों से?
मिलार्ड! अरे ओ मिलार्ड!!
जरा तुम तो रहम खाओ
माना कि कानून ने आँखों में बांध रखी है पट्टी
तुम्हारी तो है खुली।
देखो एक माँ की आँखों से बहते बेटी के जख़्म को
जैसे एक आतंकी को बचाने के लिए आधी रात
तुम कोर्ट खोलकर फैसला करने लगे थे
आज भी कर दो न एक रात में फैसला
न दो उन दुष्ट दुष्कर्मी और हैवान को माफ़ी
दरिन्दों को बचानेवाले वकील को ही दे दो फाँसी।
नही करोगे तो बढ़ता रहेगा हौसला इनका
नहीं थमेंगे अपराध कभी
कानूनी पेंचों में तुम्हें उलझाते रहेगे
चंद टुकड़ों में बिककर दरिन्दों को बचाते रहेंगे।
तुम्हारी भी तो बेटी होगी?
निर्भया की जगह तुम्हारी बेटी होती तो क्या करते?
है जवाब?
हैदराबाद एनकाउंटर पर सवाल करनेवालों,
है कोई जवाब तुम्हारे पास?
यूँ ही नहीं जश्न मनाया था लोगों ने,
क्यूंकि तंग आ चुके हैं लोग
कोर्ट की इस तारीख़-पे-तारीख़ से।

©पंकज प्रियम
कवि पंकज प्रियम


1 comment:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 01 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!