Friday, February 28, 2020

789. मर नहीं जाता

ग़ज़ल
क़ाफ़िया- अर
रदीफ़- नहीं जाता
1222 1222 1222 1222

जरूरत हो भले जितनी, किसी के  दर नहीं जाता,
बुलाये बिन कभी मैं तो, किसी के घर नहीं जाता।

लकीरों में लिखा जो भी, वही होता यहाँ अक्सर,
किसी के चाहने भर से, यहाँ मैं मर नहीं जाता।

सफ़र में साथ गर हो तो, सफ़र आसान हो जाता,
अकेले भी चलूँ तो क्या, कभी मैं डर नहीं जाता।

जवानी चंद रातों की, नहीं मग़रूर तुम होना,
चमक ये चाँदनी पाकर, कभी मैं तर नहीं जाता।

"प्रियम" का साथ पाने को, सभी बैचेन हैं रहते,
तड़पती है कई जानें , अगर छूकर नहीं जाता।

©पंकज प्रियम

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