Wednesday, October 28, 2020

886. तुम निकिता थी न!इसलिए सब मौन हैं

तुम निकिता थी न
 इसलिए सब मौन है 
वह तौफ़ीक़ है इसलिए तो 
 सब के सब मौन हैं। 

यहाँ लोग लड़कियों की अस्मत नहीं 
उसका मज़हब देखते हैं।
 मासूमों की जान नहीं 
 उसकी जात देखते हैं। 
 हाथरस में दलित थी तो
 सब के सब गिरते-पड़ते दौड़ पड़े
 मगर मेवात पे सब मौन हैं!

 यहां तो लोग अखलाक को 
 लंदन तक ले जाते हैं।
 लेकिन पालघर में पुलिसिया मोब्लिंचिंग से 
 सबकी जुबाँ को पाला मार जाता है। 
 सबूत सामने, गवाह सामने,
 खुद कानून सामने लेकिन कार्रवाई ठेंगा

निकिता! सबने देखा 
सीसीटीवी में कैसे पागल कुत्तों ने तुम्हें घसीटा
 और सरेआम मार दी गोली। 
 सबूत सामने, गवाह सामने 
 लेकिन कार्रवाई घण्टा? 

क्योंकि वह तौफ़ीक़ है
 वोट बैंक का जरिया है 
सेडो सेक्युलरिज्म का झण्डा है 
परिवार रसूखदार है 
बड़े बड़े आकाओं का उसपर वरदहस्त है
 इसलिए उसे कुछ नहीं होना
 क्योंकि कानून है बौना। 

 छूट जाएगा मिल जाएगी बेल
 फिर करेगा वह खूनी खेल। 
ये कानून जो है अंधा
 तभी तो अपराधियों का
 बेख़ौफ़ चलता है धंधा। 

 निःसन्देह इसकी सजा कठिन हो
 सरेआम लटकाओ फाँसी पर
 या जला दो जिन्दा चौराहे पर।
 यह लव जिहाद ही है,
 धर्म नहीं बदला तो क्या मार दोगे?
 यह वहशीपन है सरासर 
नहीं मानी तो क्या जान लोगे?


 निकिता की अम्मा! 
 मत गुहार लगाओ  न्याय की 
मत करो इंसाफ की उम्मीद।
 तुम्ही बनो काली, खुद बन जाओ दुर्गा 
खुद करो संहार इन दुष्टों का।
 अस्मत पे जो डाले हाथ
 तुम काट डालो उसके हाथ।
 @कवि पंकज प्रियम

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