Friday, April 15, 2022

938.अज़ान

पूजा-इबादत vs लाउडस्पीकर

इन दिनों अज़ान vs हनुमान चालीसा का विवाद बढ़ता जा रहा है। ऐसा नहीं है कि यह मुद्दा अचानक से उभरा है दरअसल लोग परेशान हमेशा से थे लेकिन तब कोई खुलकर बोलने की या विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। हमारा देश एक तरफ तो धर्म निरपेक्षता का दावा करता है वही  एक धर्म विशेष के लोग दिन में पाँच बार लाउडस्पीकर लगाकर जोर-जोर से चिल्ला कर कहते हैं कि उनका ईश्वर महान है और उसके सिवाय किसी अन्य भगवान का कोई अस्तित्व नहीं है। यह तो सरासर दूसरे धर्म की आस्था का अपमान करना है। अन्य किसी भी धर्म में इस तरह की बात नहीं कि जाती है। सनातन धर्म मे तो सदैव सर्व धर्म समभाव की बात होती है। संविधान कहता है कि सबको सबके धर्म और आस्था का सम्मान करना चाहिए। देश के विभिन्न हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ये मसला उठता रहा है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट 2 महत्वपूर्ण आदेश हैं. 18 जुलाई 2005 और 28 अक्टूबर 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि शांति से, बिना ध्वनि प्रदूषण का जीवन आर्टिकल 21 के तहत मिले 'जीने के अधिकार' का हिस्सा है. अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर बाकी लोगों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
 वैसे भी पूजा इबादत मन से की जाती है उसे लाउडस्पीकर पर चिल्ला कर नहीं किया जाता है। इसीलिए पहले मन्दिर आबादी की कोलाहल से दूर बिल्कुल एकांत में बनाया जाता था ताकि शांत वातावरण में एकाग्रचित्त होकर साधना की जा सके। धीरे-धीरे लोग मंदिरों के आसपास बसने लगे। मस्जिद तो बिल्कुल शहर के बीचोबीच बनने लगी मंदिरों में सुबह शाम आरती होती है वहीं मस्जिदों में 5 बार लाउडस्पीकर पर अज़ान की जाती है। जहाँ एक ही धर्म के लोग हो तो कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन आज हर जगह हर धर्म मजहब के लोग रहते है ऐसे में आसपास के लोगों को परेशानी होती ही है। हमें अपनी आस्था के साथ साथ दूसरे धर्मों के प्रति भी सद्भावना रखनी चाहिये अपमान नहीं। इस सबन्ध में मैं अपनी खुद की पीड़ा साझा करना चाहूंगा। 2014 में जब मैं पाकुड़ में था तब मेरे निवास स्थान से कुछ ही दूरी पर मस्जिद थी। अज़ान तो जैसे तैसे झेल लेता था लेकिन रमज़ान का महीना कष्टप्रद था। सेहरी के लिए रात ढाई बजे से ही लाउडस्पीकर पर घोषणा शुरू हो जाती थी कि उठकर सभी सेहरी कर लें और यह करीब1 घण्टे तक लगातार चलता था। पूरे रमजान में मैं सो नहीं पाता था। अरे! सबको सेहरी और इफ़्तार का वक्त मालूम होता है तो फिर हल्ला मचाने की क्या जरूरत है। हमारे यहाँ जब तीज जितिया का पर्व होता है तो औरतें खुद उठकर पानी पी लेती हैं इसके लिए पूरे मोहल्ले को तो नहीं जगाते हैं। वैसे भी वाहन, कल-कारखानों से वैसे भी ध्वनि प्रदूषण से पूरा देश त्रस्त होता जा रहा है और ऊपर से लाउडस्पीकर और डीजे ने तो कहर ही बरपाना शुरू कर दिया है। ऐसे में अगर लाउडस्पीकर हटाने की मांग उठी है तो सबको पहल करते हुए मस्जिदों से उतार देनी चाहिए। झगड़ा ही ख़त्म, लेकिन जब एक धर्म के लोग अपनी जिद पर अड़े रहेंगे तो दूसरे पक्ष के लोग भी लाउडस्पीकर लगाकर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे यह तो स्वाभाविक है। अब नमाज़ के लिए भी लोग सड़कों को बाधित कर बीच सड़क पर नमाज़ पढ़ने लगे हैं तो परेशानी सबको होती है। पूजा इबादत निहायत निजी मामला है उसे या तो अपने घर में या फिर निर्धारित स्थल पर ही करनी चाहिए। आपकी इबादत से अगर किसी अन्य को कष्ट पहुँचे तो फिर वह कभी फलदायी नहीं हो सकता। उल्टे उसका दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः सभी को समझदारी दिखाते हुए लाउडस्पीकर हटा देनी चाहिए। 
कवि पंकज प्रियम

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