प्रकृति और मानव
प्रकृति क्रन्दन आज सुनो, सुनो करुण चीत्कार।
मूढ़मति अरे मानवों, कर गलती स्वीकार।।
मानव कर्मों की सज़ा , सबको मिलती आज।
दूषित है पर्यावरण, मानव ऐसे काज।।
रोक कदम अब आज तुम, बहुत किया संहार।
पलपल प्रकृति देख अभी, करती है हुंकार।।
कदम मिलाकर प्रकृति के, चलो हमेशा संग।
नहीं करो प्रदूषण तुम, भर लो जीवन रंग।।
देख जरा कैसे धरा, पल-पल रही कराह।
जख़्म दिया तूने उसे, ख़त्म हुई सब चाह।।
जीवन तुझको दे धरा, भुगत रही अंजाम।
मत कर उसका चीर हरण, होगा फिर संग्राम।।
दोहन करते जो रहे, जल-जंगल आधार।
ख़त्म समझ संसार फिर, सुन कुदरत ललकार।।
जंगल को उजाड़ अगर, बसे शहर कंक्रीट।
छत तो होता पर मगर, हिले नींव की ईंट।।
©पंकज प्रियम
विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये सब मिलकर इसे बचाएं।
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