लेखक का काम बिगड़ी भाषा को सुधारना है न कि बिगड़ी बोली पर नया साहित्य सृजन करना
आदिपुरुष को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है। फ़िल्म में कलाकारों के चयन से लेकर उनके गेटअप और संवाद पर सबको घोर आपत्ति है। सृजनात्मक स्वतंत्रता के नामपर यहाँ तक तो छूट ली जा सकती है लेकिन जो ध्रुव तथ्य हैं उन्हें ही बदल देना कहाँ तक सही है? जैसे की भगवान श्री राम की आँखों के समक्ष सीता हरण, जबकि जग विख्यात है कि राम हिरण रूपी मारीच का वध करने गए थे और लक्ष्मण को सीता ने उनकी सहायता हेतु भेजा था। अगर रावण राम के समक्ष सीताहरण करने का सामर्थ्य रखता तो फिर मारीच का स्वर्ण मृग बनना और रावण को खुद साधु वेश धरने की क्या जरूरत थी। जो रावण लक्ष्मण रेखा पार कर न सका वह राम की आँखों के समक्ष सीता हरण कर सकता था? और फिर राम क्या रोते-रोते सीता का हरण होते देखते? इसी तरह संजीवनी बूटी के विषय में भी कुछ अलग ही तथ्य दिए गए हैं। इन सवालों पर Manoj Muntashir जी कहते हैं कि ये अलग तरह की रामायण है। उन्होंने अपने बयान में कहा है कि उन्होंने संवाद आजकल की भाषा में लिखा है। अगर आज की यूथ गलत भाषा बोलेगी तो उसे सुधारना क्या हम कलमकारों की जिम्मवारी नहीं बनती? यूथ का भाषा बिगड़ी है तो बॉलीवुड संवादों के कारण ही। अगर हम अपने बच्चों को बढ़िया सीरियल या फिल्में दिखाते हैं तो उनकी भाषा भी परिष्कृत हो जाती है। #कृष्णायण को लेकर पिछले 6 माह से मैं कृष्ण पर बनी फिल्में और सीरियल देख रहा हूँ तो मेरी बेटियों का भी मन उसमे लग गया। पिछले 6 माह में मेरे बच्चों ने इतनी शुद्ध हिंदी सीख ली है जितना कि 6 साल के स्कूल की पढ़ाई में नहीं। राधा कृष्ण सिरियल के अंत में दिखाए गए उपदेशों को अमल में लाना शुरू कर दिया है। व्यापक परिवर्तन देखा है मैंने अपने बच्चों में जो पहले वीडियो गेम देखकर चिड़चिड़े हो रहे थे। फ़िल्म और धारावाहिक में संवाद काफी महत्वपूर्ण होते हैं जो बर्षो तक याद रहते हैं। बच्चों को रामायण, महाभारत, श्रीकृष्ण बगैरह दिखाना चाहिए। इससे न केवल उसकी भाषा शुद्ध होती है बल्कि संस्कार भी बढ़ते हैं। आदिपुरुष में भले अन्य संवाद अच्छे हैं लेकिन जिस हनुमान से सभी हृदय से जुड़े हैं उनके मुख से बम्बइया टपोरी वाली बोली तो कतई पचने वाली नहीं है। बच्चे अगर हनुमान के मुख से भी इस तरह की बोली सुनेंगे तो वे और बिगड़ेंगे। रही बात गेटअप, लोकेशन और फिल्मांकन की तो कोई भी किरदार जँच नहीं रहा है। न राम, न सीता, न रावण न हनुमान। राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे और सीता जगत जननी स्वरूपा हैं। इस फ़िल्म में न तो राम की वेशभूषा सही है और न ही माँ सीता की। रावण तो बिल्कुन किसी मुगलिया आक्रांता की क्षवि में हैं जबकि रामायण के मुताबिक लंकेश काफी आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था। ज्ञान, रूप और शक्ति का स्वामी था। बजरंगबली को भी अजीब दाढ़ी में मुगलिया रूप दे दिया है। बाकी किरदारों का भी गेटअप बहियात लग रहा है।
No comments:
Post a Comment