कुछ देखा है
फैशन के नवबिस्तर में अब हया-शर्म को सोते देखा है।
नए युग की अपसंस्कृतियों से भारत को रोते देखा है।
परपुरुष स्पर्श पर लंका जलते
चीरहरण पर महाभारत होते देखा है।
दुर्योधन की जंघा टूटते और
दुःशासन लहू से सर धोते देखा है।
हर नारी का सम्मान है साड़ी
औरत का अभिमान है साड़ी
नए युग का नया जमाना,
गैरों से अब क्या शर्माना?
जब से हुई आधुनिक नारी,
परपुरुष ही पहनाते साड़ी।
काजल, मेंहदी, सोलह सिंगार,
गैर मर्दो से ही करवाती नार।
अतिआधुनिकता के चक्कर में
खुद से खुद अस्मत खोते देखा है।
जिमट्रेनर, टैटू और पार्लर में
गैरों के आगे खुद नँगा होते देखा है।
आज भी पूजा अनुष्ठानों में
यज्ञ हवन संस्कारों में
किसी औरत को टीका
कभी पण्डित नहीं लगाते हैं।
लेकिन देखो नया जमाना
खुद घर की इज्जत को
अब गैरों के हाथ थमाते हैं।
देखो-देखो-देखो
घर-घर लुटती अस्मत देखो
रील पे अधनंगी औरत देखो
दंगाई और भीड़ के हाथों
होती नंगी किस्मत देखो।
विकास को अपने कांधे संस्कृति का शव ढोते देखा है।
फैशन के नवबिस्तर में अब हया-शर्म को सोते देखा है।
नए युग की अपसंस्कृतियों से भारत को रोते देखा है।
कवि पंकज प्रियम
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