Monday, November 27, 2023

977.सच्चा प्यार

तन-मन के इस मोह में, भूल गया संसार। 
क्या होती है प्रीत रे..क्या होता है है प्यार?

पाने को ही सब कहे, पाया सच्चा प्यार। 
प्रेम तो पाना है नहीं,.खोना नदिया धार।।

प्रेम की धुरी कृष्ण तो ,    राधा है विस्तार।
कान्हा सृष्टि है अगर,.... राधा है आधार।।

प्रेम दरस जो चाहिए, ..जाओ यमुना पार ।
यमुना तट घट-घट कहे, राधा माधव प्यार।।

प्रेम समझना हो अगर, भज लो राधेश्याम।
वृंदावन कण-कण जपे,     राधे-राधे नाम।।

कवि पंकज प्रियम 

1 comment:

Admin said...

आपकी कविता पढ़कर सच में मन श्रद्धा से भर गया। आपने प्रेम को जिस तरह कृष्ण-राधा की गहराई से जोड़ा है, वो दिल को बड़ी नरमी से छू लेता है। आप प्यार को सिर्फ पाने की चीज़ नहीं मानते, बल्कि उसे बहने वाली नदी की तरह देखते हो, जो चलती रहती है, देती रहती है।