Friday, December 8, 2023

976.कृष्ण का जीवन

कैसे तुझे बताऊँ राधा, क्या कहता है मेरा मन?
सबने खोजा तुझसे बाहर ,  देख न पाया तेरा मन।
कृष्ण का होना कठिन है कितना, कैसे तुझे बताऊँ?
सबने  तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।
1
सबने देखा नाचते-गाते, दिखी न मन की व्याकुलता।
गोपियों के संग रास रचाते, मनमोहन की आकुलता।
यमुना तट पर बंसी बजैया, राधा के संग कृष्ण कन्हैया।
माखन चोरी करते देखा, ग्वाल बाल संग ता ता थाईया।
वस्त्र चुराते सबने देखा...देख न पाया मन दर्पण।
सबने खोजा तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।न। 
2
छोड़ गया राधा को कान्हा, सबने लांछन मुझपर डाला।
प्रेम का पाठ पढ़ाने हेतु, विरह की मैंने पी ली हाला।।
दूर कदम मैं जितना तुझसे, पाँव में उतने पड़ते छाले। 
विरह की वेदना कैसी होती, क्या समझेंगें दुनियावाले।
पाने को सब प्रेम कहे पर, प्रेम स्वयं का है अर्पण।
सबने खोजा तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।
3.
मैया छूटी, बाबा छूटे, .......-..छूटा सब घरबार हमारा।
गोकुल, मथुरा और वृन्दावन, छूट गया परिवार हमारा।
द्वारिका डूबी सागर में और हो गया कुल संहार हमारा।
कृष्ण का जीवन सरल कहाँ जब पीड़ा में संसार हमारा।
सबने बाँसुरी धुन को सुना, सुन न पाया मन क्रंदन।
सबने खोजा तन के बाहर ,  देख न पाया अंतर्मन।
4. 
युग परिवर्तन करने हेतु, धरती पर अवतार लिया।
शत वर्षो तक दूरी हमने, राधा से स्वीकार किया।
धर्म स्थापित करने हेतु, महाभारत का युद्ध किया।
राज दिलाया पाण्डव को, खुद गांधारी श्राप लिया। 
सबने मेरी लीला देखी, देख न पाया आख़िरी क्षण।
सबने खोजा तन के बाहर, देख न पाया अंतर्मन। 
कैसे तुझे बताऊँ राधा, क्या कहता है मेरा मन।


पंकज प्रियम


5 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

Rupa Singh said...

बहुत सुंदर रचना
जय श्री राधे कृष्णा 🙏

Onkar said...

बहुत सुंदर

शुभा said...



वाह! बहुत खूब!!

Admin said...

आपने कृष्ण के मन की बात इतनी ईमानदारी से सामने रख देते हो कि मैं हर पंक्ति में उनकी थकान, उनका दर्द और उनका छुपा हुआ प्रेम महसूस करता हूँ। मुझे सबसे ज़्यादा वो हिस्से छूते हैं जहाँ कृष्ण राधा से खुद का सच कहने की कोशिश करते हैं।