Sunday, June 24, 2018

371.जहर


हद हो गई इम्तेहां की
स्कूल में फ़ट गई चादर
मां जैसी होती सिस्टर
पिता से होते हैं फादर।
तुम भी चुप रहे मसीहा!
कुकृत्य हुआ तेरे ही घर
सभी पाप के भागी बने
क्या फादर,क्या सिस्टर।
सारी हदें यूँ पार कर दी
अस्मत तार तार कर दी
कोई लूटा,कोई बच गया
सब हुआ,तेरे कहने पर।
क्या खूब फर्ज निभाया
फादर का धर्म निभाया
दरिंदों के हाथ सौंपते
क्या तरस नहीं आया?
सिर्फ लड़कियां नहीं थी
जनचेतना की बोली थी
हैवानियत भी कांप उठी
ढाया जैसा उनपे कहर।
अब खामोश हो गए सारे
शोर भी थम गए किनारे
क्या जंगल,गांव, शहर
कैसा फैल रहा ये जहर।
नारी तुझे ही उठना होगा
खुद हथियार बनना होगा
बचाना है सम्मान अगर
तुझे तलवार बनना होगा।
©पंकज प्रियम
24.6.2018