टारगेट बाबा रामदेव नहीं, योग, आयुर्वेद और सनातन है
योग गुरु बाबा रामदेव ने भले ही अदालत का सम्मान करते हुए बिना शर्त माफी मांग ली लेकिन कोर्ट द्वारा उसे अस्वीकार करने से इतना तो स्पष्ट लगता है की टारगेट सिर्फ बाबा रामदेव और उनकी पतंजलि नहीं बल्कि योग, आयुर्वेद, सनातन और भारतीय संस्कृति है। लोगों को दिक्कत है एक सन्यासी वेशभूषा से, बाबा रामदेव में बाबा शब्द से, अनेक भगवा कपड़ों से, लोगों को दिक्कत हो रही है उनके भारतीय संस्कृति और सनातन के प्रति आस्था से, लोगों को परेशानी है बाबा रामदेव का प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन में खड़े होने से, उनके राम मंदिर उद्घाटन में ज़ोरदार उपस्थिति से, हर सुबह देशभर को योग सिखाने के उनके कर्म से, लोगों को दिक्कत है हर चैनल पर उनकी उपस्थिति से, हर चैनल पर पतंजलि के विज्ञापन से। लोगों को दिक्कत है उनका सनातन धर्म का जोरदार समर्थन करने से, दिक्कत हो रही है बाबा रामदेव के देशभर में वैदिक शिक्षा का गुरुकुल स्थापित करने से शिक्षा को बनिया की दुकान बनाने वाले अंग्रेजी मीडियम और मिशन स्कूलों को।तुष्टिकरण करने वाले लोगों को दिक्कत होती है बाबा रामदेव के हिंदुत्व वाले बयानों से।
भ्रामक दावे क्या सिर्फ पतंजलि में दिखती है अन्य सभी उत्पादों के विज्ञापन का सत्य हैं? फेयर एंड लवली से कौन गोरा हुआ है?, कोलगेट और पेप्सोडेंट से किसकी दांत मजबूत हुई है? कोका कोला पीने से कौन सी तूफ़ानी ताकत आ जाती है। सैकड़ो उतपाद और उनके झूठे विज्ञापनों को याद कीजिए। स्थिति ये है अब टीवी पर एड आते ही लोग चैनल बदल देते हैं। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद हो या अंग्रेजी दवा, सभी कंपनियां लोगों को वर्षो से बेवकूफ बनाकर जेब पर डाका डालने का काम कर रही है लेकिन दिक्कत उनसे नहीं है। दिक्कत तो है भारतीय योग परंपरा, आयुर्वेद और सनातन धर्म से, जिसका ध्वज उठाकर बाबा रामदेव ने पूरे विश्व मे एक जागृति उत्पन्न कर दी। बिना किसी फिल्मी सितारों के अंगप्रदर्शन वाले विज्ञापन के बाबा रामदेव ने खुद अपने उत्पादों को बेचकर विज्ञापन का गणित ही बदल डाला। बाबा रामदेव ने योग की प्राचीन पद्धति को जन जन तक पहुंचाने का काम किया। इसे ही पश्चिमी देश योगा, ब्रीदिंग थेरेपी, एक्सरसाइजज़ ओरगेनिक उत्पाद के रूप में प्रचारित कर पेटेंट कराने में लगे है। वही बाबा रामदेव भारत की प्राचीन योग, आयुर्वेद और संस्कार के पुनर्जागरण करने में लगे हैं तो लोगों को दिक्कत हो रही है। बाबा रामदेव का ही प्रयास है कि 21 जून को विश्व योग दिवस में रूप में मान्यता मिली। लोग महंगे जिम में जाकर रोज पसीना बहाते हैं लेकिन वही बाबा रामदेव टीवी पर आकर मुफ्त में योग सिखाते हैं तो लोगों को दिक्कत है।
पतंजलि के उत्पादों ने यूंही घर-घर में स्थान नहीं बना लिया है दरअसल पतंजलि के उत्पाद विदेशी कंपनियों के मुलाबले बहुत ही सस्ते और अच्छे हैं। बाबा रामदेव से तमाम विदेशी कंपनियां तो पहले से खार खाये बैठी थी उपर से कोरोनिल लाकर उन्होंने सीधे-सीधे IMA से दुश्मनी मोल ले ली। कोरोनिल से किसी को दिक्कत नहीं हुई उल्टे उस दौर में सबको आराम ही मिला। इसके ठीक उलट कोरोना महामारी में निजी अस्पतालो ने इलाज के नाम पर जो खुलकर डकैती की उसके सभी भुक्तभोगी हैं। एक छोटे-मोटे अस्पताल में भी 2 दिन में लाखों रुपये वसूले जा रहे थे। डॉक्टरों के एक गिरोह ने लाखों रुपये में नकली इंजेक्शन का धंधा कर लोगों की जान से खिलवाड़ किया। इसी तरह ऑक्सीजन सिलिंडर, दवा, सुई, इलाज, एम्बुलेन्स के नाम पर सबने जमकर जमकर लूट मचाई। आज भी इलाज, जाँच और दवा के नाम पर जिस तरह से लूट मची है उससे एक आम आदमी अस्पताल जाने के नाम पर ही सिहर जाता है। इलाज में कितनो के घर-बार, जमीन जायदाद बिक जाते हैं फिर भी बीमारी को सौ प्रतिशत ठीक करने की गारंटी कोई अस्पताल या डॉक्टर नहीं ले सकता।
इस प्रकरण से बिल्कुल स्पष्ट है कि टारगेट सिर्फ राम देव नहीं बल्कि उनके नाम से जुड़े राम, योग, संत, सनातन और आयुर्वेद है। जिसके खिलाफ आज एक पूरा वैश्विक गिरोह षड्यंत्र में लगा है। हमें इस चक्रव्यूह को समझना होगा, जो भी भारत में हिन्दू, सनातन, या भारतीय संस्कृति की बात करता है उसके पीछे एक पूरा वर्ग काम करने लगता है। सुप्रीम कोर्ट को इन तमाम विषयों पर संज्ञान लेना चाहिए। बात अगर भ्रामक विज्ञापनों का है तो तमाम विज्ञापनों पर ही कार्रवाई होनी चाहिए। फिल्मी सितारों द्वारा झूठे विज्ञापनों के मकड़जाल में बच्चे-बड़े सभी उलझते चले जाते हैं। कार्रवाई तो उन तमाम विदेशी उत्पादों पर होने चाहिए जो भारत की बहुसंख्य आबादी की भावनाओं के साथ खेलते आ रहे हैं। कार्रवाई तो उन अस्पतालों पर भी होने चाहिए जो देश की गरीब आबादी को इलाज के नामपर खुलेआम लूटते आ रहे हैं। कार्रवाई उन डॉक्टरों पर भी होना चाहिए जो वेतन तो सरकार से लेते हैं लेकिन प्रैक्टिस प्राइवेट करते हैं। कार्रवाई तो खुद अदालतों को अपने उपर करनी चाहिए जो मुकदमे को तारीखों के घनचक्कर में आम आदमी की चप्पलें घिसवाने का काम करती है। आतंकवादियो के लिए आधीरात को अदालतें खुल सकती है लेकिन एक आम आदमी एक अदद तारीख के लिए तरस जाता है। जबतक न्याय मिलता है तबतक बहुत देर हो चुकी होती है। कई उदाहरण ऐसे हैं कि वर्षों तक जेल की सजा काटने के बाद उसे निर्दोष साबित किया जाता है। बचपन मे जेल गया व्यक्ति बूढ़ा होकर जब निर्दोष होकर बाहर निकलता है तो फिर उसे न्याय कहेंगे क्या? कहते हैं कि देर से मिला न्याय भी अन्याय ही है। कार्रवाई तो उन स्कूलों पर भी होना चाहिए जो शिक्षा के नाम पर मनमाने दाम पर किताब, कॉपी, जूते, बस्ते, ड्रेस की दुकान खोलकर बैठे हैं। किसी एक व्यक्ति पर टारगेट करने से सिस्टम में बदलाव नहीं आएगा।
पंकज प्रियम
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