Wednesday, June 3, 2020

843. चुप्पी तोड़ो

चुप्पी तोड़ो स्वस्थ रहो तुम,
घर-बाहर अलमस्त रहो तुम।
इस मुश्किल में न घबराना-
स्वच्छ रहो और स्वस्थ रहो तुम।

चार दिनों का दर्द समझना,
मुश्किल में औरत का रहना।
न रक्त अशुद्ध न वो अपवित्र-
मानव तन का चक्र समझना।

जीवन का सृजन वरदान के नारी,
इस कष्ट को सहती जान है नारी।
आरंभ सृजन का होता जिससे-
अपवित्र अशुद्ध अभिशाप वो कैसे?

जो रक्त सृजन आधार है बनता,
अपवित्र उसे क्यूँ कोई कहता?

©पंकज प्रियम