Sunday, November 1, 2020

887.कोरोना में खौफ़ कहाँ बा?

कोरोना के काल में, बंद पड़ी रेल बस,
आया जो चुनाव देखो, चल लगी रैलियाँ।

सजधज नेता सभी, हांक रहे मंच पर,
कोरोना के नियमों की, उड़ रही धज्जियाँ।

स्कूल भी बंद पड़े, बंद हैं बाज़ार पर, 
नेताओं ने खोल रखी, वोट की तिजोरियां।

खतम चुनाव जब, बढ़ेगा कोरोना तब, 
यही नेता सब मिल, देंगे फिर गालियाँ।।

2
याद करो दिन वह, कोरोना से मरने पे, 
लाश वो पिता की तुम्हें, छूने न दिया रे,

मर गयी मैया पर, डरे रहे इतना कि,
अंतिम संस्कार बेटा, तूने नहीं किया रे। 

खौफ़ बढ़ा इतना कि, बंद किया पूजा पाठ, 
पर खोल मधुशाला, सभी छक पिया रे।

घट गई रोजी रोटी, बढ़ गयी महंगाई,
सुन के चुनावी बोली, फटे मोर जिया रे।
3
 पक गए कान सुन, फोन रिंगटोन अब,
कोरोना से बचने को, सुन सुन बोलियाँ।

ठेका लिया हमने ही, मास्क और दूरी पर ,
नेताओं को देख लो, कर रहे रैलियाँ।

नहीं कोई नियम हैं, नहीं कोई खौफ़ में है, 
लाखों-लाख भीड़ देखो, कैसी अठखेलियाँ।

नेता तो चालाक पर, जनता को हुआ क्या है?
खुद ही तो खाय रहे, जहर की गोलियाँ।।
पंकज प्रियम