झारखण्ड के १० साल : कितना विकास कितनी उम्मीदे
-पंकज भूषण पाठक
झारखण्ड गठन को १० साल हो गये और १५ नवम्बर को राज्य की जनता एक और स्थापना दिवस समारोह से रुबरु होगी. लेकिन जिस उम्मीद से इस राज्य का निर्माण हुआ था क्या वो सही मायनो में पूरा हुआ ,विकास सूचकांक को देखकर तो बिकुल ही नही लगता. किसी भी क्षेत्र की बात कर तो पिछले दस वर्षो में विकास की गति जस की तस है ,नेताओ का विकास हुआ और जनता ठगी रह गयी--एक लम्बे आन्दोलन के बाद १५ नवम्बर २००० को आदिवासियो का अपना एक अलग राज्य का सपना साकार हुआ और बिहार से अलग कर झारखण्ड प्रदेश का गठन हुआ. आदिवासियो के हितो के नाम पर बने इस प्रदेश हर मुख्यमंत्री आदिवासी ही रहा लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये है की उनका अबतक विकास नही हो सका. पिछले १० वर्षो में राज्य की जनता ने ८ मुख्यमंत्री, उतने ही राज्यपाल को कुर्सी पर बैठते और हटते देखा है. कुर्सी की छिनाझपटी भी देखी और घोटालो का घोटाला भी. सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक विकास सूचकांक में झारखण्ड का स्थान बहुत ही नीचे है. विकास के किसी भी क्षेत्र में झारखण्ड में अपेक्षित विकास नही हुआ है- दरअसल जिन उम्मीदों पर झारखण्ड राज्य का गठन हुआ उसपर किसी भी सरकार ने अपनी इच्छाशक्ति नही दिखाई,राजनीतिक अस्थिरता भी इसकी एक बड़ी बजह मानी जा सकती है की किसी भी सरकार को बेहतर शासन करने का मौका ही नही मिला,जोड़तोड़ की सरकार अपना पूरा समय गठबंधन को बचाने में ही लगी रही और राज्य के खजाने पर हर किसी ने अपना हाथ धो लिया--इसबार भी १५ नवम्बर को भगवान बिरसा की जयंती के साथ ही राज्य की स्थापना की बधाईया ले लेंगे,सरकार कुछेक बड़ी घोषनाए भी करेंगी और जनता उनके भाषणों पर बस तालिया बजती रह जाएगी.अब भी वक्त है जागने का,पिछले १० वर्षो में राज्य का कितना विकास हुआ और जो उम्मीदे थी उसपर मंथन करने की जरुरत है..
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