Saturday, November 6, 2010

हंसी बिखेरता चल

हंसी बिखेरता चल
उल्फत की राह में भी
हंसी बिखेरता तू चल
शमां जैसे जलकर भी बुझता नहीं
टकरा के पत्थरों से वो थकता नहीं
तपिश में जलता है पलपल
फिर भी मुस्कुराता है गिरी अचल ।
शबनम की चाह में तरसता हरपल
बनता कवि की प्रेरणा चाँद की दीदार में
अपलक निहारता वो विकल
तुम भी बनोगे किसी शायर का गजल ।
चाँद न सही
तू चांदनी ही बनके निकल
शायरी न सही
बन जाओ एक हसीं गजल ।
होठो की हसीं न सही
तू आंसू ही बनके निकल
उल्फत की राह में भी
हसीं बिखेरता तू चल ।
-- पंकज भूषण पाठक" प्रियम "

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